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उपन्यास

प्रेम की भूतकथा

विभूति नारायण राय

अनुक्रम धन्य है वह मनुष्य जिसका अपराध क्षमा किया गया पीछे     आगे

एक बार डायरी पढ़नी शुरू की तो फिर उसे छोड़ नहीं पाया। सोना तो दूर, अधलेटा जिस करवट पढ़ना शुरू किया था उसी स्थिति में मैं आखिर तक टँगा रह गया। बाद में जब मैंने इस डायरी के बारे में खोज-बीन शुरू की तब पता चला कि कैमिलस नाम का यह इटैलियन डायरी लेखक 1910 में इलाहाबाद डायोसिस का सर्वोच्च पादरी था। इलाहाबाद डायोसिस के पुराने दस्तावेज इस बात के गवाह हैं कि यह सिर्फ धर्म गुरु ही नहीं था बल्कि एक वास्तुविद के रूप में भी इसे लोग याद करते हैं। सधे हुए हाथों से लिखे सुड़ौल अक्षर धुँधले पड़ जाने के बावजूद स्पष्ट रूप से पढ़े जा सकते थे।

14 अगस्त 1910

सुबह उठा तो झड़ी लगी हुई थी। इस साल प्रभु की भरपूर कृपा हुई है। मानसून अच्छा बरस रहा है। कल राम अजोर माली ने बताया था कि गंगा पार उसके गाँव में धान की फसल अच्छी है। नित्य क्रियाओं से निपट कर बाहर बरामदे में बैठकर चाय पी। रामअजोर की मेहनत लॉन और फूलों की क्यारियों में दिखाई दे रही थी।

हर रविवार की तरह आज भी कुछ जल्दी थी। आज विशेष मौका यह था कि लंच पर सेंट पैट्रिक चर्च से फादर रोमिरो आने वाले थे। उनके साथ मेजर अलबर्ट आयेगे जो अभी हाल ही में दून से इलाहाबाद छावनी आये हैं। मैंने गिरजा जाने के पहले खानसामे को मेहमानों के बारे में बताया और लंच तैयार करने के लिए कहा। खानसामा रोशन पिछले बीस साल से इलाहाबाद डायोसिस में खाना बना रहा है। उसका बाप किसी ताल्लुकेदार का खानसामा था। बपतिज्मा लेने के बाद वह कैथेड्रल के कम्पाउण्ड में ही रहने लगा है। उसके सभी नौ लड़के-लड़कियाँ अच्छा खाना बनाते हैं। बाप के मरने के बाद सभी कैथेड्रल में ही लग गये हैं। रोशन पिछले बीस सालों से किसी न किसी फादर के साथ काम करता रहा है। तीन सालों से तो मेरे ही साथ है। ऐसी इटैलियन डिशें बनाता है कि इलाहाबाद और वेनिस के बीच के अठारह हजार मील की दूरी खत्म हो गयी लगती है। उसे सिर्फ मेहमानों की संख्या और उनके मुल्कों के नाम बताने होते हैं और बाकी उस पर छोड़ा जा सकता है। आज भी मैंने यही किया और चर्च के लिए निकल पड़ा।

चर्च में ठीक दस बजे प्रार्थना सभा शुरू हुई। बारह बजे मैं वापस लौटा। प्रार्थना सभा के पहले मुझे नैनी जेल का जेलर आगस्टीन दिखाई दे गया। मैं पिछले कई हफ्तों से जेल नहीं जा सका था। इस बीच वहाँ कोई इसाई कैदी नहीं आया था। आगस्टीन प्रार्थना शुरू होने पर मेरे पास आया।

"फादर, आपके लिए एक नया मेहमान आने वाला है।"

उसने कहा तो मैं समझ गया कि उसके जेल में कोई नया कैथोलिक आने वाला है।

"प्रभु उसे अपनी शरण में लेंगे, आ जाने दो फिर मैं भी उससे मिलने आऊँगा।"

मैंने कहा और फिर प्रार्थना की तैयारी में लग गया।

आगस्टीन वापस अपनी सीट पर नहीं गया और वहीं खड़ा रहा। मुझे लगा वह कुछ और कहना चाहता है।

"कितने दिन तुम्हारे पास रहेगा तुम्हारा नया मेहमान?" मैंने पूछा।

"सिर्फ तीन हफ्ते।"

"इतनी छोटी सजा पर आया है... कौन है यह?"

"सजा तो बड़ी है पर तीन हफ्ते में ही खत्म हो जायेगी। मृत्युदण्ड मिला है। 5 सितम्बर को फाँसी दी जानी है।"

"हे ईश्वर!" मेरा मन कुछ खिन्न हो गया। मैंने अपना ध्यान प्रार्थना पर केन्द्रित करते हुए कहा -

"ठीक है, मास खत्म होने पर बात करेंगे।"

मास खत्म होने पर मैंने आगस्टीन को अपने घर चलने के लिए निमंत्रित किया। वहाँ आराम से बात हो सकती थी। अभी मेरे मेहमानों के आने में वक्त था। आगस्टीन तैयार हो गया। हम दोनों घर आ गये।

बादल तभी बरस कर रुके थे। पूरे माहौल पर उमस तारी थी। मैंने बाहर बरामदे में ही कुर्सियाँ निकलवा लीं और आगस्टीन को वहीं बिठाकर अन्दर का इन्तजाम देखने चला गया। खानसामे ने लगभग पूरी तैयारी कर ली थी और मेज लगाने के लिए मेरे हुक्म का इंतजार कर रहा था। मैंने उसे मेहमानों के आने तक रुकने को कहा और बाहर दो कप चाय लाने के लिए कहता हुआ आगस्टीन के पास आ गया।

आगस्टीन इस बीच मेरे माली से लान और फूल-पत्तियों के बारे में बात कर रहा था। मुझे उसकी दिलचस्पी का पता था। मैंने हँसते हुए कहा -

"मेरे पास तुम्हारी तरह काम करने के लिए कैदियों की फौज नहीं है पर उम्मीद है राम अजोर ने तुम्हें निराश नहीं किया होगा।"

"निराश नहीं, फादर इसने तबियत खुश कर दी। इतनी अच्छी लान पूरे इलाहाबाद में दो-तीन ही होंगी। जाने के पहले मैं इसे कुछ इनाम देना चाहूँगा।"

इसी तरह की दो-चार बातें करके हम जल्द ही नये कैदी पर आ गये।

आगस्टीन ने जो बताया उसके मुताबिक एलन नाम का यह कैदी अँग्रेज है और 14वीं लाइट कैवलरी में कारपोरल था। मसूरी में उसने किसी केमिस्ट की हत्या की थी और उसे फाँसी की सजा हुई है। हाई कोर्ट से पुष्टि हो जाने के बाद वह नैनी जेल भेजा जा रहा था जहाँ उसे फाँसी लगने वाली थी। आगस्टीन को आज सुबह जो तार मिला था उसके मुताबिक कल दोपहर वह ट्रेन से इलाहाबाद लाया जा रहा है। स्टेशन से नैनी जेल तक ले जाने के लिए एक बैलगाड़ी और गारद का इन्तजाम करने के लिए आगस्टीन ने पुलिस सुपरिन्टेन्डेंट को लिख दिया है। आगस्टीन को अभी सिर्फ इतना मालूम था। कैदी के साथ उसके मुकदमे के कागजात आने पर ही पता चल सकेगा कि उसने किसकी हत्या की थी और उसके पीछे क्या कारण रहे होंगे। कैदी के पूरे कागजात नहीं आये थे लेकिन उसके ओहदे से आगस्टीन का अंदाज था कि वह 27-28 साल का नौजवान होगा। मेरा मन बुझ गया।

आगस्टीन जल्दी में था। मैंने उसे अपने यहाँ आने वाले मेहमानों के बारे में बताया और उसे भी खाने के लिए रुकने का आग्रह किया। फादर रोमिरो को तो वह जानता भी था, लेकिन क्षमा माँगकर वह उठ खड़ा हुआ। मैं उसे छोड़ने गेट तक गया। माली गेट पर खड़ा था। आगस्टीन ने उसे आठ आने इनाम के तौर पर दिये। माली ने झुककर सलाम किया और गेट खोल दिया।

उसी समय फादर रेमिरो का ताँगा हमारे सामने आकर रुका। आगस्टीन रुक गया। ताँगे से फादर रेमिरो के उतरते ही वह अभिवादन करने उनकी तरफ बढ़ा। आगस्टीन के अभिवादन का उत्तर देते हुए फादर रेमिरो ने अपने साथ आये दूसरे आंगतुक से उसका परिचय कराया -

"इनसे मिलो। यें हैं मेजर अलबर्टो। पिछले दिनो देहरादून से यहाँ तबादले पर आये हैं।"

फिर मुझसे हाथ मिलाते हुए बोले -

"अच्छा हुआ आज आगस्टीन भी लंच पर हमारे साथ होंगे। बहुत दिनों बाद मुलाकात हो रही है।"

"नहीं फादर, मैं नहीं रुक पाऊँगा। मुझे वापस जेल जाना है। कल एक कैदी बाहर से आ रहा है, उसके लिए कुछ इन्तजाम करने हैं।"

"ऐसा कौन कैदी है जिसके लिए जेलर को इतना परेशान होना पड़ रहा है?"

"फादर, कोई गोरा फौजी है जिसे तीन हफ्ते बाद फाँसी पर चढ़ना है।"

"ओह..."

फादर रेमिरो का चेहरा लटक गया लेकिन मेजर अलबर्टो की प्रतिक्रिया ने हम सबको चौंका दिया। अलबर्टो मेरे पास ही खड़ा था और मेरी ही तरह फादर रेमिरो और आगस्टीन के संवाद को खत्म होने का इंतजार कर रहा था। आगस्टीन की बात सुनते ही वह उसकी तरफ लगभग झपटा।

"क्या कारपोरल एलन तुम्हारी जेल में आ रहा है?"

"हाँ, वही है। पर तुम उसे कैसे जानते हो?"

"लम्बी कहानी है, सुनने के लिए तुम्हें लंच तक हमारे पास रुकना पड़ेगा।"

जेलर आगस्टीन के चेहरे पर हिचकिचाहट साफ झलक रही थी।

"कम ऑन, आगस्टीन। ये मत सोचो कि मैंने तुम्हें पहले से निमंत्रित नहीं किया था। तुमसे जो ताल्लुकात हैं उनमें इस तरह की औपचारिकता की जरूरत शायद नहीं है। मेरा कुक बहुत होशियार है। हुकुम मिलते ही वह तीन लोगों के खाने को चार लायक बना देगा।"

मैंने आगस्टीन के संकोच को दूर करने की कोशिश की।

पता नहीं यह मेरा प्रयास था, मेजर अलबर्टो के मुँह से एक दिलचस्प प्रसंग सुनने की उत्सुकता या कुछ और कि जब फादर रेमिरो ने हल्के से आगस्टीन का हाथ पकड़कर अन्दर की तरफ चलने का इशारा किया तब वह मना नहीं कर पाया।

अगले एक घंटे में मेजर अलबर्टो ने हमें जो कहानी सुनायी वह मनुष्य की क्रूरता एवं कृतघ्नता की ऐसी कथा थी जिसे हममे से कोई भी अपने जीवन में दोहराना नहीं चाहेगा।

31 अगस्त 1909 की वह सुबह मेजर अलबर्टो को अच्छी तरह याद है जब लैण्डोर कनवालसेंस डिपो के उसके दफ्तर में पुलिस के दो सिपाही बदहवास-से पहुँचे थे। अलबर्टो कनवालसेंस डिपो का कमाण्डिंग अफसर था और सुबह की पी.टी. में भाग लेने के बाद अस्पताल की बैरकों का चक्कर लगाते हुए अपने दफ्तर पहुँचा ही था। रोज की तरह आज भी वह साढ़े पाँच बजे सुबह पीटी ग्राउण्ड पर पहुँचा था। सूबेदार मेजर ने स्टेशन पर मौजूद स्वस्थ जे.सी.ओ. और एन.सी.ओ. को फालिन कर उसे रिपोर्ट दी। मेजर अलबर्टो ने स्टेशन के दूसरे सात अफसरों के साथ थोड़ी देर वर्जिश की और सूबेदार मेजर को पी.टी. जारी रखने की हिदायत देते हुए दूसरे अफसरों को साथ लेकर बैरकों का चक्कर लगाने निकल पड़ा।

1827 में निर्मित यह कनवालसेंस डिपो मुख्य रूप से ईस्ट इन्डिया कम्पनी के अँग्रेज सिपाहियों एवं अधिकारियों के स्वास्थ्य लाभ के लिए बनाया गया था। डिपो में खास तौर से फ्रंटियर के अफगान युद्ध के घायल सैनिक इलाज के लिए आते थे। उनके अलावा मैदानी इलाकों की भीषण गर्मी से पीड़ित या छोटे-बड़े युद्धों में घायल सिपाही यहाँ के अस्पताल में भर्ती रहते थे। रोज की तरह भर्ती मरीजों का हाल-चाल पूछते और डाक्टरों से उनके इलाज के बारे में जानकारी हासिल करते हुए वह अपने दफ्तर तक आ गया। एक निर्धारित दिनचर्या थी। परेड के बाद थोड़ी देर वह दफ्तर में रुकता जहाँ एडजुटेंट उसे जरूरी डाक दिखाता था, वे दिन भर के कार्यक्रमों के बारे में बातें करते और नौ बजे वह वापस अपने बँगले पर चला जाता। नहाने-धोने और नाश्ता करने के बाद, जिसमें लगभग दो घंटा लगता होगा, वह वापस अपने दफ्तर लौटता।

उस दिन भी डाक देखकर वह उठने ही वाला था कि स्टिकमैन आर्डरली ने अन्दर कमरे में आकर सलाम किया -

"साहब, पुलिस के दो सिपाही मिलना चाहते हैं।"

अलबर्टो ने कोफ्त से एडजुटेन्ट की तरफ देखा। सुबह के तीन घण्टों ने उसे थका दिया था। वह घर जाकर आराम करना चाहता था। ऐसे समय किसी तरह का खलल उसे अच्छा नहीं लगा।

एडजुटेंट उसकी नजरें पहचानता था। वह बाहर चला गया।

बाहर से एडजुटेंट थोडी देर में ही अंदर आ गया। उसके साथ एक सिपाही भी था। सिपाही ने कमरे में घुसते ही सलाम किया पर बोला कुछ नहीं। एडजुटेंट ने ही किस्सा बयान किया।

मसूरी के माल रोड पर केमिस्ट शॉप पर बैठने वाले जेम्स की बीती रात हत्या हो गयी थी। अलबर्टो के लिए यह खबर बुरी तरह से चौंकाने वाली थी। वह जेम्स को जानता था। दरअसल लैण्डोर डिपो में रहने वाले सारे फौजियों के लिए यह सदमा पहुँचाने वाली बात हो सकती थी। जेम्स के फौजियों से बड़े अच्छे ताल्लुकात थे। लगभग सभी को वह नाम से पुकारता था। फौजी दिन भर उसकी दुकान पर भीड़ लगाये रहते थे। वे वहाँ जुआ खेलते, शाम को शराब पीते और पैसा खत्म होने पर जेम्स से ही कर्ज लेते।

कभी-कभी जेम्स लैण्डोर भी आता और कई बार अलबर्टो से भी मिलता। अलबर्टो उससे मजाक में शिकायत करता कि उसकी वजह से स्टेशन के अनुशासन पर बुरा असर पड़ रहा है। रोज कोई न कोई नाइट रोल काल से अनुपस्थित मिलता है और सभी जानते थे वह कहाँ होगा।

अलबर्टो ने जेम्स को हमेशा एक खुशमिजाज और बेफिक्र इंसान के रूप में देखा। ऐसे व्यक्ति की किससे दुश्मनी हो सकती है, लेकिन एडजुटेन्ट के पास तो इससे भी बुरी खबर थी।

पुलिस को लैण्डोर डिपो में भर्ती कारपोरल एलन पर शक था। वही शख्स था जो जेम्स के साथ अंतिम बार देखा गया था। वे उसी की तलाश में लैण्डोर आये थे। कौन है यह कारपोरल एलन - अलबर्टो ने एडजुटेन्ट की तरफ खोजती निगाहें डालीं।

एडजुटेंट को भी पक्का यकीन नहीं था लेकिन उसे नाम सुना हुआ लग रहा था। शायद 14 वीं लाइट कैवेलरी का सिपाही था। उसने सूबेदार मेजर को बुलवा भेजा था। उसके आने पर स्पष्ट हो पायेगा।

थोडी देर में ही सूबेदार मेजर बदहवास-सा लगभग दौड़ता हुआ वहाँ पहुँचा। एडजुटेंट का बुलावा मिलने के पहले ही खबर उस तक पहुँच गयी थी। सिर्फ उसे नहीं, स्टेशन के सभी लोगों को जेम्स की हत्या की खबर मिल गयी थी। जेम्स के मित्रों की संख्या काफी अधिक थी। परेड ग्राउण्ड पर, अस्पताल में, बैरकों में हर जगह लोग झुण्ड मे खड़े होकर इसी बारे में बातें कर रहे थे।

पुलिस के दोनों सिपाहियों ने कमाण्डिंग आफिसर के कार्यालय तक पहुँचने के पहले रास्ते में जिन लोगों से बातचीत की थी उन सभी ने स्टेशन के चप्पे-चप्पे तक यह सूचना पहुँचा दी थी। न सिर्फ जेम्स की हत्या बल्कि कारपोरल एलन के हत्यारा होने की जानकारी सभी को मिल गयी थी। जितनी स्तब्धकारी जेम्स की हत्या थी उससे कम एलन की भागीदारी नहीं थी। जिस तरह जेम्स खुशमिजाज और दोस्तबाज मनुष्य के रूप में जाना जाता था उसी तरह एलन भी हमेशा हँसते हुए खिलंदड़े सिपाही के रूप में अपनी पलटन में मशहूर था। ऐसा आदमी हत्यारा कैसे हो सकता था?

सूबेदार मेजर ने एडजुटेंट की जानकारी की पुष्टि कर दी थी। कारपोरल एलन 14वीं लाइट कैवेलरी का सिपाही था। फ्रन्टियर की पहाड़ियों पर अफगानों से लड़ता हुआ बुरी तरह जख्मी हुआ था। जख्म कुछ भर जाने और यात्रा लायक हो जाने पर वह साल भर पहले ही इस डिपो पर स्वास्थ्य लाभ के लिए आया था। अब पूरी तरह स्वस्थ हो गया था और वापस अपनी पलटन जाने वाला था। लैण्डोर डिपो से वापस जाने के पहले उसने तीन महीने की छुट्टी माँगी थी और कल शाम ही वह रवाना हुआ था। सूबेदार मेजर को इसलिए यह सब स्पष्ट याद था क्योंकि कल अपराह्न छुट्टी पर रवानगी के पहले वह उसके सामने पेश हुआ था।

कनवालसेंस डिपो पर नियम यह था कि छुट्टी पर रवाना होने के पहले और छुट्टी से लौटने के बाद हर सैनिक एडजुटेंट के सामने पेश होता था। कल दोपहर बाद एलन सूबेदार मेजर की बैरक में आया और उसे एडजुटेंट के सामने पेश करने के लिए कहा। एडजुटेंट तीन बजे खेल के मैदान पर होता था इसलिए उसने एलन को पाँच बजे तक इंतजार करने के लिए कहा। एलन जल्दी मचा रहा था। वह पूरी तरह रात घिर जाने के पहले राजपुर पहुँच जाना चाहता था। उसे बहस करता देखकर सूबेदार मेजर ने अपने जोखिम पर उसे जाने दिया। शाम को वह एलन के छुट्टी के कागज एडजुटेंट के सामने रखना चाहता था पर एडजुटेंट दफ्तर में बैठा ही नहीं। आज यह घटना हो गयी।

सूबेदार मेजर ने स्टेशन का कानून जरूर तोड़ा था परन्तु इसमें उसकी कोई बदनीयती नहीं थी। वह अनुशासन का पक्का था और कमाण्डिग अफसर तथा एडजुटेंट दोनों उसकी इस बात के कायल थे, इसलिए उसके साथ ज्यादा डाँट-फटकार नहीं हुई।

मेजर अलबर्टो ने सूबेदार मेजर और एडजुटेंट को पुलिस के सिपाहियों को लेकर माल रोड पहुँचने का हुक्म दिया। अपने बँगले पर पहुँचकर उसने जल्दी-जल्दी स्नान किया, वर्दी बदली और साईस को घोड़ा तैयार कर लगाने के लिए कहा। जितनी देर में घोड़ा कस कर तैयार किया गया उसने हल्का-फुल्का नाश्ता कर लिया। उसका पूरा ध्यान जेम्स की हत्या पर था। बार-बार जेम्स का चेहरा आँखों के सामने घूम जाता। क्यों हुई होगी उसकी हत्या? वह एलन की शक्ल याद करने की कोशिश कर रहा था पर कोई स्पष्ट आकृति नहीं उभर रही थी। कनवालसेंस डिपो पर चार सौ से अधिक मरीज थे। इसके अलावा स्टेशन पर दूसरी टुकड़ियाँ भी थीं। इनमें से एलन का चेहरा याद करना बहुत मुश्किल था। जो भी हो, हुआ बहुत बुरा। अलबर्टो को इस स्टेशन पर दो साल हो चुके थे और वह जल्द ही पोस्टिंग की उम्मीद कर रहा था। ऐसे समय एक धब्बा उसके कैरियर पर लग ही गया।

पहाड़ी रास्तों पर जरूरी सावधानी को कई बार नजरअंदाज करता हुआ तेज रफ्तार से अलबर्टो माल पहुँचा। लाइब्रेरी से थोड़ा आगे बढ़ते ही उसे हवा में घुली सनसनी सूँघने का मौका मिल गया। थोड़ी-थोड़ी दूर पर पहाड़ियों और गोरों के छोटे-छोटे झुण्ड रास्ते के किनारे खड़े होकर इसी हत्या की बातें कर रहे थे। मसूरी के बसने के बाद यह पहली हत्या थी और वह भी एक इतने लोकप्रिय इंसान की जिसे लगभग सभी लोग जानते थे। रास्ते में अलबर्टो को कई फौजी और भी मिले जो माल की तरफ भागे चले जा रहे थे। उनके अभिवादन का जवाब देता हुआ जब वह माल पहुँचा तो दूर से ही उसे केमिस्ट की दुकान के चारों तरफ गोरे फौजियों की भीड़ दिखाई पड़ी।

अलबर्टो के घोड़े के लिए भीड़ ने रास्ता बना दिया। दुकान के सामने जाकर उसने घोड़ा रोका और हवा में छलाँग लगाते हुए घोड़े से उतरा। इस बीच एक सिपाही ने घोड़े की रास पकड़ ली। उसके आने की खबर पाकर दुकान के अन्दर से एडजुटेंट और सूबेदार मेजर निकल आये। वे उसके आने के थोड़ा पहले ही वहाँ पहुँचे थे और केमिस्ट शॉप के अन्दर पुलिस के जमादार से मामले के बारे में जानकारी ले रहे थे। उनके पीछे-पीछे जमादार भी निकल आया। तीनों के अभिवादनों का जवाब देता हुआ अलबर्टो तेजी से दुकान के अन्दर चला गया।

अन्दर दुकान में कुछ खास नजर नहीं आ रहा था। सब कुछ वैसा ही था जैसा कि किसी केमिस्ट शॉप में हो सकता था।

"हुजूर अंदर चलें।" जमादार ने दुकान के पीछे बने कमरे की तरफ इशारा किया।

अंदर जाकर अलबर्टो को समझ आया कि दुकान से सटा कमरा जेम्स की रिहायश थी। कमरा कोई बहुत बड़ा नहीं था। एक तरफ तख्त था जिस पर बिना सलवटों वाला बिस्तर इस बात की गवाही दे रहा था कि उस पर रात में कोई सोया नहीं था। कमरे के बीचोबीच एक कुर्सी आधी उलटी पड़ी थी। कमरे में फर्श पर खून और काँच के टुकड़े बिखरे पड़े थे। पास ही में एक बोतल आधी टूटी पड़ी थी।

अलबर्टो की निगाह कमरे के एक कोने में कुर्सी पर बैठी एक औरत पर पड़ी जो हौले-हौले सुबक रही थी। वह फौरन उसे पहचान गया। यह तो मिसेज सैमुअल थीं जिनके पति कैप्टन सैमुअल की कई वर्ष पहले सहारनपुर में मृत्यु हो गयी थी। मसूरी के सोशल सर्किल में अक्सर उनसे मुलाकात होती रहती थी। ये यहाँ क्यों हैं यह पूछने का समय नहीं था, अतः वह चुप ही रहा।

लाश का मुआयना कर चुके जमादार ने बताया कि हत्या हुए कम से कम बारह घण्टे हो गये हैं। हत्यारे ने पहले मृतक के सिर पर बोतल से प्रहार किया था और फिर किसी तेज धार वाले टीन के टुकड़े से उसकी गर्दन इस तरह काटी थी कि एक कान से दूसरे कान तक चीरा लग गया था। गले के बीचोबीच एक सुराख दिख रहा था जिससे अभी भी खून टपकता-सा लग रहा था। फर्श पर खून थक्कों में चिपक कर काला पड़ चुका था। लाश में हल्की सड़न शुरू हो गयी थी। जिस नृशंस तरीके से जेम्स को मारा गया था उसे देखकर अलबर्टो के लिए कमरे में खड़ा रहना मुश्किल हो गया। वह बाहर दुकान में आ गया। उसके पीछे-पीछे उसके दोनों अफसर भी बाहर आ गये।

दुकान में बैठकर उन्होंने अगली कार्यवाही के बारे में तय किया। जमादार हिन्दुस्तानी था और कातिल तथा मकतूल दोनों गोरे, इसलिए थोड़ा घबराया-सा लग रहा था, पर मेजर अलबर्टो ने उसका हौसला बँधाया। सूबेदार मेजर जो सूचनाएँ एलन के बारे में इकट्ठी कर पाया था, उनके मुताबिक उसे देहरादून जाकर आगे के लिए ट्रेन पकड़नी थी। अगर वह हत्या के फौरन बाद भी रवाना हुआ हो तब भी सात मील का पहाड़ी रास्ता तय कर वह भोर के पहले राजपुर नहीं पहुँचा होगा और ज्यादा उम्मीद थी कि वह राजपुर में ही किसी जगह आराम कर रहा होगा या फिर अभी राजपुर से देहरादून के रास्ते पर किसी बैलगाड़ी में थोड़ी दूर गया होगा। अलबर्टो ने दो मजबूत कद-काठी वाले सिपाही तैयार करने को कहा और सूबेदार मेजर को उनके साथ दो गोरे फौजी भेजने का हुकुम दिया। आधे घंटे में ही दो हिन्दुस्तानी सिपाही और दो गोरे फौजी पहाड़ी टट्टुओं पर राजपुर के लिए निकल पड़े। उनके पास मेजर अलबर्टो का देहरादून के पुलिस कप्तान के नाम एक खत भी था।

उनका अनुमान सही निकला। दो घंटे बाद जब यह टुकड़ी राजपुर पहुँची तो एलन उन्हें वहीं मिल गया। राजपुर में जहाँ जंगल खत्म होता था और पहाड़ी शुरू होती थी वहीं पर दो-तीन परचून की दुकानें थीं। पहली दुकान पर पूछते ही पता चल गया कि एक फौजी रात भर पहाड़ी रास्ते का सफर तय करके सुबह सवेरे उस दुकान पर पहुँचा था। रात भर के सफर की थकान और नींद से उसके कदम लड़खड़ा रहे थे। उसने इस दुकान पर तंबाकू खरीदी और रुकने के लिए किसी सराय का पता पूछा था। दुकानदार ने उसे थोड़ी दूर पर स्थित एक सराय का नाम बता दिया। वहाँ गोरे फौजी मसूरी से आते-जाते रुकते थे। टुकड़ी के सिपाहियों ने घोड़ों से उतरने की जगह सीधे सराय का रास्ता लिया। सराय में उन्हें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी। हुलिया बताते ही सराय मालिक ने उन्हें उस कमरे के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया जिसके अंदर एलन सो रहा था।

थोड़ी देर खटखटाने के बाद दरवाजा खुला और आधी नींद से जगा एलन उनके सामने था। मामला गोरे का था इसलिए हिन्दुस्तानी सिपाही खड़े रहे, लेकिन गोरे फौजियों ने झपटकर एलन की मुश्कें कस दीं। अचानक हमले से एलन घबराया जरूर, लेकिन जल्द ही उसने हाथ-पैर फेंकना और अंग्रेजी में हमलावरों को गालियाँ देनी शुरू कर दीं। पर उसकी चली नहीं। काले सिपाही भी गोरों की मदद को आ गये और उन चारों ने एलन को निरुपाय कर दिया। तलाशी में दो ऐसी चीजें मिलीं जो इस हत्या की तफतीश में बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकती थीं। उसके बस्ते से कुछ सोने के सिक्के मिले। जेम्स को हत्या वाले दिन ही वेतन मिला था और उसमें भी सोने के सिक्के थे। एलन के सामान में टिन का छोटा टिफिन बाक्स भी था जिसमें अधखाये सैण्डविचेज थे। अनुमान था कि जेम्स की गर्दन किसी धारदार टिन के टुकड़े से काटी गयी थी।

सबसे पहले एलन को पुलिस कप्तान के बँगले पर ले जाया गया।

मसूरी से आने वालों ने मेजर अलबर्टो का खत संतरी के हाथ अंदर भिजवा दिया। थोड़ी देर बाद ही कप्तान के सामने उनकी पेशी हुई।

मसूरी से आये हुए पुलिस वालों ने कप्तान से पूरा वाकया कह सुनाया।। किस्सा सुनते-सुनते उसके जबड़े भिंचते गये और एलन के चेहरे पर टिकी उसकी निगाहें लाल होती गयीं। उसकी जानकारी में मसूरी का यह पहला कत्ल था। मसूरी उसके क्षेत्राधिकार में सबसे शांत और खूबसूरत इलाका था। कत्ल भी एक गोरे का और कातिल भी गोरा। क्या सोचेंगे नेटिव गोरों के बारे में?

पूरी घटना सुनने के बाद कप्तान ने कैदी के चेहरे पर निगाहें गड़ा दीं। वहाँ कुछ ऐसा नहीं था जिससे पश्चात्ताप या दुख झलक रहा हो। कैदी का चेहरा भावशून्य था। वह कप्तान से सीधे आँखें भी नहीं मिला रहा था।

"कल रात तुमने जेम्स को क्यों मारा?"

"मैंने जेम्स को नहीं मारा। उसके कत्ल की जानकारी मुझे इन लोगों से पहली बार मिली है।"

एलन ने मसूरी से आये सिपाहियों की तरफ इशारा किया।

उसकी आवाज के ठण्डेपन से कप्तान बिलबिला गया। उसने दोनों हिन्दुस्तानी सिपाहियों को बाहर जाने का इशारा किया। कमरे में सिर्फ चारों गोरे रह गये। एलन के दोनों हाथ पीछे को बँधे थे और उसकी कमर में एक मजबूत रस्सी थी जिसे एक गोरे फौजी ने पकड़ रखा था।

कप्तान मजबूत लेकिन धीमे कदमों से एलन के सामने जाकर खड़ा हो गया। कमरे में पूरी तरह से एक ऐसा सन्नाटा पसरा हुआ था जिससे खौफ की अनुभूति होती है। कप्तान जिस कुर्सी पर बैठा था उसके खड़े होने से जमीन पर उस कुर्सी के हल्की सी रगड़ने की आवाज हुई और फिर वही खामोशी छा गयी।

"तुमने उसे क्यों मारा?"

"मैंने उसे नहीं मारा।"

एक झन्नाटेदार उलटा झापड़ कैदी के मुँह पर पड़ा और उसका मुँह बायीं तरफ लटक गया।

"तुमने उसे क्यों मारा?"

"मैंने नहीं... "

एक और तगड़ा हाथ पड़ा और कैदी ने पिच्च से खून थूक दिया। गाढ़े कत्थई खून के साथ दाँत का आधा टुकड़ा भी जमीन पर गिरा।

काफी जद्दोजहद के बावजूद कप्तान एलन से कबूल नहीं करवा पाया कि जेम्स का कत्ल उसने किया था। थक कर वह एक कुर्सी पर बैठ गया।

"कोतवाल को बुलाओ।"

कोतवाल के बुलाने की जरूरत नहीं पड़ी। मसूरी के सिपाहियों के कप्तान के बँगले पर पहुँचने और उनके साथ अँग्रेज कैदी की आमद की खबर कोतवाली तक पहुँच चुकी थी और कोतवाल बावर्दी-पेटी दुरुस्त बाहर मौजूद था। अन्दर एक गोरे फौजी की धुनाई हो रही थी इसलिए वह बाहर ही इन्तजार कर रहा था।

हुकुम मिलते ही कोतवाल अंदर आया और उसने कप्तान को कड़क सलामी पेश की।

कप्तान कैदी की तरफ देखकर दाँत पीसते हुए अँग्रेजी में गालियाँ बक रहा था। कोतवाल चुपचाप सर झुकाये खड़ा रहा।

"इस बास्टर्ड को बाहर ले जाओ।"

दोनों अँग्रेज फौजी कैदी को लेकर बाहर चले गये।

अन्दर सिर्फ कोतवाल और कप्तान रह गये। काफी देर तक माथापच्ची करने के बाद यह तय हुआ कि एलन को वापस घटनास्थल पर ले जाया जाये। अपने पुराने दोस्त के हत्या की जगह देखने पर शायद उसकी अंतरात्मा उसे धिक्कारे और वह अपना गुनाह कुबूल ले।

दोपहर ढल रही थी और तीन-चार घंटे में अँधेरा घिरने लगता। वैसे भी बरसात के दिन थे और उस समय भी बादलों के कुछ टुकड़े आसमान में तैर रहे थे। कभी भी बारिश हो सकती थी। ऐसे में जंगलों और पहाड़ी रास्तों से एक हत्यारे को लेकर जाना खतरे से खाली नहीं था, इसलिए तय यह हुआ कि कैदी को सुबह तड़के मसूरी ले जाया जाए। रात भर के लिए एलन को कोतवाली की हवालात में बंद कर दिया गया।

भोर में पाँच बजे उनकी यात्रा शुरू हुई। अभी पहली किरण भी नहीं फूटी थी। वे सात थे। मसूरी से दो गोरे और दो देशी सिपाही आये थे। यहाँ से कोतवाल, एलन और उसके साथ एक और सिपाही इस काफिले में शरीक हो गये। मसूरी तक सात मील की पहाड़ी यात्रा तीन घंटे से कम में तय नहीं हो सकती थी। उनके टट्टू इन पहाड़ी रास्तों के अभ्यस्त थे लेकिन फिर भी बहुत तेज नहीं चला जा सकता था। शुरू में उन्होंने एलन के हाथ पीछे बाँध रखे थे लेकिन जल्द ही उन्हें खोलना पड़ा क्योंकि बँधे हाथों से टट्टू हाँकना संभव नहीं था।

सात लोगों का काफिला था - बीच में एलन और उसके आगे-पीछे तीन-तीन टट्टू सवार। पहाड़ी पगडन्डी पर दो टट्टू एक साथ नहीं चल सकते थे इसलिए उन्हें एक कतार में चलना पड़ रहा था। जब कभी पगडंडी पहाड़ियों से हटकर चौड़े समतल भूभागों से गुजरती, कोतवाल के इशारे पर दो सिपाही एलन के अगल-बगल अपने टट्टू लगा देते और आगे-पीछे वाले भी सिमट कर एक तंग घेरा बना लेते।

वे जब मसूरी में जेम्स की दवा की दुकान पर पहुँचे तो सूरज ठीक सर के ऊपर चमक रहा था। सुबह जो बादल के टुकड़े दिख रहे थे वे कब के गायब हो चुके थे और तीन घंटे की कठिन यात्रा ने सिर्फ टट्टुओं को ही चूर नहीं किया था बल्कि उन पर सवार मुसाफिर भी पस्त हो गये थे। कोतवाल और हिन्दुस्तानी सिपाहियों ने अपनी पगड़ियाँ हाथों में ले लीं। पसीना उनके माथे से पानी की धार की तरह बह रहा था। एलन नंगे सर था, पर उसका पूरा माथा और सर के बाल भी पसीने से लथपथ थे।

हत्या हुए चौबीस घंटे से अधिक हो गये थे और शव भी पिछली शाम को ही हटाया जा चुका था, पर दुकान के आस-पास हवा में सनसनी घुली हुई थी। भीड़ कल की तरह तो नहीं थी पर इतनी तब भी थी कि कोतवाल को घोड़े से उतरना पड़ा। उसके पीछे बाकी सवार भी उतर गये। एक हाथ में घोड़े की लगाम और दूसरे में अपनी पगड़ी थामे वह भीड़ के बीच से केमिस्ट शॉप की तरफ बढ़ा। एलन एक कतार में चल रहे काफिले के बीच में सर झुकाये चल रहा था। थकान से ज्यादा शर्म उस पर तारी थी।

"हियर कम्स द बास्टर्ड।"

कोतवाल ने चौंक कर पीछे देखा। हिंस्र उत्तेजना से भरी आवाज थी जिसे बोलने वाले ने अपना गला दबाने की पूरी कोशिश की थी पर आवाज घुटे स्वर में बाहर निकल ही आयी थी।

भीड़ में गोरे फौजी भी थे और उनमें से किसी ने एलन को पहचान लिया था।

प्रत्युत्पन्नमति कोतवाल समझ गया कि एलन को खतरा हो सकता है। रास्ते भर दोनों गोरे फौजियों और मसूरी के सिपाहियों ने जो कुछ बताया था उससे उसे यह समझने में कोई दिक्कत नहीं हुई थी कि जेम्स गोरे सिपाहियों के बीच बहुत लोकप्रिय था। वे वक्त-बेवक्त उससे कर्जा लेते थे, उसके साथ रोज कोई न कोई फौजी बैठकर शराब पीता था, हर शाम उसका रिहायशी कमरा जुआरियों का प्रिय अड्डा बन जाता और लैण्डोर के हर फौजी कार्यक्रम में उसकी एक उपस्थिति अनिवार्य होती थी।

आवाज ने भीड़ में बिजली का संचार कर दिया। अगर कोतवाल अपने घोड़े की रास छोड़ते और पगड़ी जमीन पर गिराते हुए एलन की तरफ न लपकता और उसके ललकारने पर उसके साथ चल रहे दो गोरे फौजियों और तीन देशी सिपाहियों ने एलन के चारों तरफ मजबूत घेरा न बना लिया होता तो एलन भीड़ के हाथों नुच-चुथ गया होता।

कुछ तो अँग्रेजी हुकूमत का अखलाक था और कुछ भीड़ में बड़ी संख्या में गोरे फौजियों की उपस्थिति जो लाख गुस्से के बावजूद अनुशासन की डोर में बँधे थे, कि कोतवाल और उसके साथी एलन को लेकर भीड़ चीरते हुए केमिस्ट शॉप में घुस गये। इसी बीच मसूरी में मौजूद पुलिस जमादार अपने कुछ चौकीदारों के साथ पहुँच गया। वह कब्रिस्तान में जेम्स के दफनाने का इंतजाम देख रहा था, कोतवाल के आने की खबर सुनते ही भागता हुआ आया। उसके साथ के चौकीदारों ने टट्टुओं को सँभाल लिया और उनमें से कुछ को जमादार ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लगा दिया।

सबसे मुश्किल था भीड़ को नियंत्रित करना। वक्त बीतने के साथ भीड़ और उसका पागलपन दोनों बढ़ता जा रहा था। चौकीदार अपनी लाठियों में लगी बर्छियों को चमका चमका कर भीड़ को दूर रखने की कोशिश कर रहे थे पर भीड़ को सँभालना मुश्किल हो रहा था। बाहर से बस इतना दिख रहा था कि दुकान में एक स्टूल पर भीड़ की तरफ पीठ करके एलन बैठा हुआ था। उसे घेर कर देहरादून से आये कोतवाल और उसके साथी खड़े थे। दूर से ऐसा लगता था कि कोतवाल एलन से कुछ पूछ रहा था और एलन उसका जवाब दे रहा था। कोतवाल के चेहरे पर झुंझलाहट से साफ था कि वह एलन के जवाब से संतुष्ट नहीं हो पा रहा था।

बाहर हर कोई एलन की झलक पाना चाहता था। भीड़ इतनी ज्यादा हो गयी थी कि केमिस्ट शॉप के सामने शायद ही कोई खाली जगह बची थी जहाँ लोग न खड़े हों। लैण्डोर छावनी तक खबर पहुँच गयी थी और वहाँ से भी धीरे-धीरे गोरे फौजी आने लगे थे। भीड़ के देशी पहाड़ी तो सिर्फ एलन को देखना चाहते थे। खुले आम किसी गोरे के खिलाफ, चाहे वह हत्यारा ही क्यों न हो, बोलना उनके लिए मुश्किल था। वे सिर्फ गोरों की धकापेल से बचकर उस हत्यारे को एक नजर देखना चाहते थे जिसने अपने मित्र की हत्या करके कृतघ्नता की खास मिसाल पैदा की थी।

पहाड़ियों से भिन्न गोरे उन्माद से पगलाये हुए थे। वे खून का बदला खून से लेना चाहते थे। उनमें से कुछ जिन्होंने जेम्स के साथ दोस्ताना वक्त बिताया था, ज्यादा उत्तेजित थे। एक दूसरे को धकेल-धकेल कर वे सामने आ जाते और हवा में मुट्ठियाँ तान-तान कर एलन को गालियाँ देते। चौकीदारों के लिए उन्हें रोकना मुश्किल हो रहा था। वे माँग कर रहे थे कि एलन को उन्हें सौंप दिया जाए। वे उसकी बोटियाँ काट डालना चाहते थे।

अन्दर कोतवाल एलन से पूछताछ जरूर कर रहा था पर उसके कान बाहर से आने वाली आवाजों की तरफ ही लगे थे। उसे समझ में आ गया था कि यदि जल्दी ही एलन को वहाँ से नहीं निकाला गया तो उसके चौकीदारों और तीन सिपाहियों के वश का नहीं था कि पगलाई गोरी भीड़ को देर तक रोक सकें। एक बार एलन उनके हाथ आ गया तो फिर उसका क्या हश्र होगा, इसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती थी। वह जल्दी से जल्दी एलन को वहाँ से निकाल कर वापस राजपुर ले जाना चाहता था पर उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि यह कैसे संभव हो सकेगा?

यह उम्मीद कि एलन अपने दोस्त के हत्या स्थल पर आते ही भावुक हो जाएगा और टूट जाएगा - सही नहीं साबित हुई। एलन पूरी तरह निर्विकार बैठा रहा। कोतवाल की झुँझलाहट इसी बात पर थी कि कई बार पूछने पर उसने एक-एक वाक्यों में जो जवाब दिये उन सबको मिला दिया जाए तो उनसे सिर्फ यही अर्थ निकाला जा सकता था कि उसने जेम्स को नहीं मारा। वह पिछली रात जेम्स के पास आया जरूर था लेकिन उसके साथ बैठकर सिर्फ एक पेग शराब पीकर वह चला गया था। जेम्स के यहाँ से उठकर वह कहाँ गया - वह नहीं बतलायेगा, उसके पास जो टिन का डिब्बा मिला है उसमें किसी ने सैण्डविचेज दिये थे, सैण्डविचेज मसूरी से राजपुर के रास्ते में उसने खा लिए, सैण्डविचेज किसने दिये थे वह नहीं बतायेगा। सोने के सिक्के जरूर जेम्स के थे, लेकिन उन्हें हत्या के काफी पहले जेम्स ने कर्ज के रूप में उसे दिया था। उसने जेम्स का कर्ज अपनी तनख्वाह में मिले कागज के नोटों से चुका दिया था। सिक्के सुविधा के लिहाज से यात्रा में ले जाना आसान था इसलिए रख लिए थे।

कोतवाल को ज्यादा गुस्सा एलन की धृष्टता पर नहीं, अपनी अक्षमता पर आ रहा था कि वह कैदी का कुछ बिगाड़ नहीं सकता था। अपने इलाके में अपराधियों के लिए वह आतंक का पर्याय था। बड़े-बड़े खूनी और डकैत उसके सामने आने पर थर-थर काँपते थे। वह खुद बड़े गर्व से सबको बताता था कि उसके पेशाब से चिराग जलता है, लेकिन यहाँ तो मामला एकदम उल्टा था। सामने जो बैठा था वह हत्यारा होने के अलावा गोरा भी था। यानी शासक वर्ग का सदस्य। पुलिस रेगुलेशन भी यही कहता था कि उसको सिर्फ ऐंग्लो-इण्डियन सारजेंट ही गिरफ्तार कर सकता था। वही उससे कड़ाई से पूछताछ भी कर सकता था।

अभी तो ज्यादा बडी समस्या थी कि एलन को कैसे बदले पर उतारू भीड़ से बचाकर निकाल ले जाया जाए और कैसे राजपुर तक पहुँचाया जाए!

इस विकट स्थिति से कोतवाल को उबारा जमादार ने। जमादार देहरादून थाने में तैनात था लेकिन मसूरी में रहता था। उसे और उसके साथ नियुक्त चार सिपाहियों के कन्धों पर मसूरी, लैण्डोर और आसपास के लगभग 20 गाँवों की जिम्मेदारी थी जिसे वह इन गाँवों के चौकीदारों की मदद से पूरा करता था। वह मसूरी के पास के ही एक गाँव का रहने वाला था और उसकी पूरी जिंदगी वहीं बीती थी। वह मसूरी के हर छोटे-बड़े को जानता था। पिछले छत्तीस घंटों से वह सोया नहीं था पर कोतवाल के आने के बाद से पूरी तरह से चौकन्ना नजर आ रहा था।

कोतवाल अन्दर एलन से पूछताछ कर रहा था और वह अपने सिपाहियों और चौकीदारों को लेकर भीड़ को दुकान से दूर रखने की कोशिश में लगा था। वह भी समझ रहा था कि ज्यादा देर तक गोरे फौजियों को रोकना मुश्किल था। उसने एक सिपाही को लैण्डोर छावनी रवाना कर दिया था ताकि स्टेशन के अफसरों को यहाँ की स्थिति का पता चल जाए और फौजियों को नियंत्रित करने के लिए वे भी कोई कुमुक भेज दें, पर लैण्डोर जाने और वहाँ से मदद आने में वक्त लग सकता था। तब तक उसे ही स्थिति संभालनी थी।

अचानक बाहर भीड़ को नियंत्रित करते-करते उसके दिमाग में कुछ कौंधा और वह अंदर की तरफ लपका।

अन्दर आकर कोतवाल के कान में वह कुछ फुसफुसाया। कोतवाल अविश्वास से सर हिलाता रहा। साफ था कि जमादार की बातें उसे आश्वस्त नहीं कर रहीं थीं, लेकिन शायद कोई विकल्प था भी नहीं इसलिए उसने आँख के इशारे से उसे अपनी सहमति दे दी और जमादार अन्दर के कमरे में चला गया। दुकान से सटा जो कमरा था और जहाँ जेम्स की हत्या हुई थी उससे एक दरवाजा बाहर गली की तरफ खुलता था। जमादार उससे बाहर निकल कर गायब हो गया।

थोड़ी देर बाद उसी दरवाजे से वह वापस आया और उसके साथ एक गोरा था। रस्ट नाम वाला यह गोरा स्थानीय फोटोग्राफर था जिसने स्थानीय अखबार के लिए कल भी तस्वीरें उतारी थीं और आज भी कोतवाल के आने की खबर पाकर इसी मकसद से आया हुआ था।

फोटोग्राफर रस्ट की माल रोड पर ही फोटोग्राफी की इकलौती दुकान थी। वह जेम्स का दोस्त था और एलन को पहचानता था। जेम्स की दुकान पर एलन के साथ उसने कई बार शराब पी थी और दो-एक बार ताश के हाथ भी आजमाये थे। अपनी कद-काठी से वह काफी हद तक एलन जैसा ही था।

अन्दर लाकर रस्ट को जमादार ने जेम्स के शयनकक्ष में बिठा दिया और दुकान में खुलने वाले दरवाजे से झाँक कर कोतवाल को अन्दर आने का इशारा किया। रस्ट कुर्सी पर बैठा था। कोतवाल ने अन्दर आकर उसका अभिवादन किया और उसके पास ही खड़ा हो गया। जमादार भी वहीं था, कोतवाल ने उसे बात करने का इशारा किया।

जमादार ने अदब से झुककर रस्ट के कान में कुछ कहना शुरू किया। उसने अभी दो-एक वाक्य ही कहे होंगे कि रस्ट को हँसी का दौरा पड़ गया और वह खड़ा हो गया।

बात थी ही कुछ ऐसी। जो योजना रस्ट के सामने रखी गयी उसके मुताबिक उसे एलन की जगह लेनी थी। एलन की कमीज पहनकर तब तक अपनी पीठ बाहर खड़ी भीड़ को दिखानी थी जब तक पुलिस एलन को सुरक्षित निकाल कर राजपुर का आधा रास्ता न पार कर ले। रस्ट को यह पूरा सुझाव काफी मजेदार लगा। उसके खड़े होते ही जमादार और कोतवाल के चेहरे उतर गये। इसके बाद एलन के बचने का और क्या रास्ता हो सकता था?

"ओके सर, हम करेगा।"

कोतवाल और जमादार दोनों के चेहरे खिल गये। लगता था कि बात बन गयी है।

एलन को अन्दर लाकर जमादार ने अपनी कमीज उतारने के लिए कहा। उसने चौंक कर जमादार को देखा। वह कैदी जरूर था पर कोई हिन्दुस्तानी पुलिस वाला उसके साथ गुस्ताखी नहीं कर सकता था।

रस्ट ने स्थिति स्पष्ट की। वह जेम्स का दोस्त था और हत्या ने उसके मन में एलन के लिए गुस्सा भी भर रखा था, पर वह यह नहीं स्वीकार कर सकता था कि भीड़ एलन को पीट- पीट कर मार डाले। कानून एलन को फाँसी पर लटका देगा तो उसे बहुत खुशी होगी, पर अभी उसकी मदद करने में उसे कोई दुविधा नहीं हुई।

"अपनी शर्ट मुझे दो और मेरी तुम पहन लो।" कमीज के बटन खोलते हुए उसने कहा।

एलन समझ गया। बाहर उग्र भीड़ जिस तरह चिल्ला-चिल्ला कर उसे सौंपने की माँग कर रही थी और हिन्दुस्तानी कोतवाल और सिपाहियों के परेशान तथा खौफजदा चेहरों को देखकर उसे काफी देर से लग रहा था कि कभी भी भीड़ चौकीदारों को धकेलती हुई अंदर घुस आयेगी और पीट-पीट कर उसका कचूमर निकाल देगी। वह अंदर से बुरी तरह हिल गया था और ऊपर से चाहे जितना शांत दिखने की कोशिश कर रहा हो, खौफ की लकीरें उसके चेहरे पर बार-बार उभर आ रहीं थीं। रस्ट का प्रस्ताव किसी अप्रत्याशित चमत्कार से कम नहीं था। उसका तनाव कुछ ढीला पड़ा।

एक सिपाही रस्ट की कमीज पहने एलन को इस तरह बाहर ले गया कि उसका पूरा शरीर कोतवाल की आड़ में छिपा रहा। दूसरे सिपाही ने उस स्टूल को, जिस पर एलन बैठा था, ऐसे कोण पर खिसका दिया कि उस पर बैठे रस्ट का चेहरा भीड़ की दृष्टि से बाहर हो गया। सिर्फ पीठ बाहर से दिखती रही। एलन और रस्ट कद-काठी में एक जैसे ही थे। दूर से उनमें फर्क करना मुश्किल था। कोतवाल थोड़ी देर रस्ट से पूछताछ का नाटक करता रहा और फिर जमादार को अपनी जगह छोड़कर वापस अन्दर वाले कमरे में आ गया।

जमादार ने बाहर सारा इंतजाम कर रखा था। एलन को मसूरी लाने वाली एस्कोर्ट पार्टी अपने टट्टुओं को लेकर वहाँ से दो मील दूर राजपुर जाने वाले पहाड़ी रास्ते पर जंगलों में छिपी हुई थी। कोतवाल ने बाहर झाँककर देखा, पूरी गली सुनसान थी। आस-पास की आबादी केमिस्ट शॉप के बाहर इकट्ठी थी। मसूरी की पहली हत्या और वह भी अपने एक पड़ोसी की - पिछले दो दिनों में शायद ही कोई सोया हो। सब उस हत्यारे की एक झलक पाना चाहते थे जिसने यह जघन्य काम किया था, सभी हत्या का कारण जानना चाहते थे और सभी हत्यारे को सजा देना चाहते थे।

मौका अच्छा था, कोतवाल एलन के कमर में बँधी रस्सी मजबूती से हाथों में पकड़े गली में निकल गया। हाथ में बल्लम लिये दो चौकीदार आगे थे और एक सिपाही उसके पीछे। सुनसान गली में वे तेजी के साथ आगे बढ़े। माल रोड पर अभी ज्यादा दुकानें या घर नहीं बने थे। वे थोड़ी ही दूर चलकर ढलुआ पहाड़ियों पर उतर गये। ढलान से ही जंगल शुरू हो जाता था। थोड़ा चलने के बाद ही उनकी रफ्तार धीमी हो गयी। घने दरख्तों की वजह से उन्हें देख लिये जाने का खतरा खत्म हो गया था। नियत स्थान पर उनके टट्टू लिये दोनों अँग्रेज फौजी और कुछ चौकीदार खड़े थे। हुकुम के मुताबिक वे अपने साथ कुछ खाने-पीने का सामान भी लाये थे। सुबह से कोतवाल और एलन ने कुछ नहीं खाया था। सब ने जल्दी-जल्दी अपने-अपने पेट भरे और फिर आने के ही क्रम में एलन की वापसी यात्रा शुरू हुई।

मेजर अलबर्टो का वृत्तांत खत्म हुआ तब हमें अहसास हुआ कि हममें से कोई एक घंटे तक बोला नहीं था। आगस्टीन खास तौर से पूरी तरह डूब कर आने वाले कैदी के बारे में सुन रहा था।

"क्या तुम्हें लगता है कि ऐसा आदमी प्रभु के चरणों में कन्फेशन करेगा?" मैंने अलबर्टो से पूछा।

"मुझे नहीं लगता, फादर। वह अदालत में भी इसी जिद पर अड़ा रहा कि उसने हत्या नहीं की है। पुलिस वाले उसे यह सोचकर घटना स्थल पर ले गये थे कि वहाँ पर पहुँचते ही वह पश्चात्ताप से टूट जाएगा पर उसके ऊपर वहाँ भी कोई असर नहीं पड़ा। दरअसल वह राक्षस है, कभी कन्फेशन नहीं करेगा।"

"देखा जाएगा। प्रभु सारे पापियों को अपनी शरण में ले लेते हैं, यह भी वहाँ स्थान पायेगा।"

मैंने बावर्ची को खाना लगाने को कहा। लंच के दौरान भी हम सिर्फ एलन की ही बातें करते रहे। फादर रेमिरो ने खाते-खाते मुझसे कहा -

"तुम्हें बहुत धैर्य दिखाना होगा फादर कैमिलस,ऐसे लोग आसानी से नहीं टूटते।"

"मुझे उम्मीद है फादर प्रभु मेरी मदद करेंगे। आगस्टीन, अगले इतवार को मैं तुम्हारे कैदी से मिलने आऊँगा। तुम्हारी इजाजत है न?"

"फादर, आपका हमेशा स्वागत है।"

21 अगस्त 1910

आज पहली बार नैनी जेल एलन से मिलने जाना था। कल रात मैं सो नहीं सका। क्या यह सिर्फ एक ऐसे हत्यारे से मिलने की उत्तेजना थी जिसे कुछ ही दिनों में फाँसी पर चढ़ना है या फिर मेरे मन की वह जुगुप्सा जो उस घृणित इंसान से मिलने की संभावना से उत्पन्न हुई थी जिसने थोड़े-से पैसों के लालच में एक ऐसे भले और खुशमिजाज इंसान को मार डाला जो उसका दोस्त भी था?

इतवार की प्रार्थना सभा खत्म करके मैंने हल्का नाश्ता किया। इक्का मेरा इंतजार कर रहा था। यमुना पार नैनी जेल तक पहुँचने में डेढ़ घंटा लगा। हर बार की तरह मेरा इक्का सीधे सुपरिटेंडेंट के बँगले पर पहुँचकर रुका। आगस्टीन शायद मेरा ही इंतजार कर रहा था। इक्का रुकने की आवाज सुनते ही बाहर निकल आया। मेरे अभिवादन का जवाब देने के साथ ही उसने मेरा हाथ थामा और मुझे अपनी लान की तरफ ले गया।

लगभग आधे एकड़ में फैले उसकी लान में दस-बारह कैदी काम कर रहे थे। उनके पैरों में इस तरह बेड़ियाँ पड़ी थीं कि वे मुश्किल से उकड़ू बैठकर काम कर पा रहे थे। उनके इर्द-गिर्द तीन-चार संतरी अपने बल्लम लिए खड़े थे। कैदियों की मेहनत का ही फल था कि सुपरिटेंडेंट के बँगले की लान चमचमा रही थी। चारों तरफ फूलों की क्यारियाँ थीं जिनमें मौसमी फूल खिलखिला रहे थे। लान के बगल में कई एकड़ का रकबा था जिसमें धान और सब्जियाँ लगी हुई थीं। उनमें भी कैदी काम करते हुए दिख रहे थे।

अगस्त की दोपहरी लान में बैठने लायक नहीं थी। आगस्टीन मुझे हाथ पकड़े हुए एक बड़े- से पाकड़ के पेड़ के नीचे ले गया जहाँ कुर्सियाँ पड़ी हुई थीं और सफेद कपड़ों में लैस एक बेयरा हाथ बाँधे हमारा इंतजार कर रहा था। कुर्सियों पर हमारे बैठते ही बेयरा अंदर चला गया और हमारे लिए पानी लेकर आया। हम औपचारिक कुशल-क्षेम से लेकर मौसमी फूलों तक की बातें करते रहे और बेयरा हमारे लिए खाने-पीने का सामान लगाता रहा।

आगस्टीन मेरे स्वर में छिपा अनमनापन भाँप गया था। मेरी आवाज में उस तरह की गर्मजोशी नहीं थी जो उससे बातचीत में रहा करती थी।। चाय का प्याला मेरे हाथ में थमाते हुए उसने कहा -

"फादर, मैंने एलन की फाइल मँगा रखी है। आप उससे मिलने के बाद पढ़ना चाहेंगे या अभी?"

मेरी चोरी पकड़ी गयी थी। मैं रास्ते भर एलन के बारे में ही सोचता रहा था। आगस्टीन की उस खूबसूरत लान में चहचहाते मौसमी फूलों के बीच में बैठे होने के बावजूद मेरा मन उसी में अटका हुआ था। कुछ भी खाते-पीते मैं उसके बारे में ही सोच रहा था। आगस्टीन ने जब यह सवाल पूछा तो मैं झेंप गया। मैंने झिझकते हुए कहा - "मैं एलन की फाइल जेल में जाने के पहले देखना चाहूँगा। अगर संभव हो तो अभी।"

"क्यों नहीं?" आगस्टीन ने हाथ से इशारा किया। हमारी चाय लगाकर थोड़ी दूर एक दूसरे पेड़ की छाया तले खड़ा बेयरा भागता हुआ हमारे पास आ गया।

"अन्दर डाइनिंग टेबल पर एक फाइल रखी है। उसे ले आओ।"

बेयरा तेज कदमों से अन्दर गया और थोड़ी ही देर में लाल फीते से बँधी एक मोटी फाइल लेकर हमारे पास आ गया।

आगस्टीन ने फाइल के ऊपर बँधा लाल फीता खोलते हुए फाइल मुझे थमा दी।

"ऊपर इसकी सर्विस बुक लगी हुई है। उससे आप रेजिमेंट में इसके आचरण और प्रदर्शन के बारे में जान सकेंगे। उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी इसमें है। अंदर एक जजमेण्ट है जो जज ने मुकदमे की सुनवाई के बाद दिया था। जजमेण्ट से आपको हत्या के बारे में जानकारी मिल सकेगी।"

फाइल को हाथ में लेकर मैं उसे यूँ ही उलटता-पलटता रहा। आगस्टीन मेरी दुविधा ताड़ गया -

"फादर, आप अकेले पढ़ना चाहेंगे? यहीं बैठकर पढ़ेंगे या गर्मी लग रही हो तो अन्दर बैठ जायें।"

मैं एकान्त चाहता था।

"मैं अन्दर पढ़ना चाहूँगा।"

मैं फाइल लिए उठ खड़ा हुआ।

आगस्टीन अंदर मुझे अपने शयनकक्ष में ले गया। बड़े-से कमरे में कपड़े का काफी विशाल पंखा लटका हुआ था और बाहर बरामदे तक उसकी रस्सी गयी हुई थी। वहाँ पहले से इंतजार कर रहे और फर्श पर पालथी मार कर बैठे एक कैदी ने हमारे कमरे में घुसते ही अपने हाथों से पंखा खींचना शुरू कर दिया।

"फादर, आपको किसी चीज की जरूरत हो तो आवाज दे दीजिएगा। दरवाजे के बाहर एक बेयरा खड़ा है। मैं भी बगल के कमरे में हूँ।"

"बहुत-बहुत धन्यवाद, आगस्टीन। मैं आराम से हूँ।"

आगस्टीन बाहर निकल गया और मैंने उतावले हाथों से फाइल खोल दी।

सबसे पहले मैंने उसकी सर्विस बुक उलटनी शुरू की। पहले पन्ने पर उसकी भर्ती का विवरण था।

जन्म - 27 सितम्बर 1880। अठारह साल पाँच महीने की उम्र में भारत के लिए खड़ी की गयी 14वीं लाइट कैवेलरी में भर्ती हो गया। भर्ती के समय पिता की मृत्यु हो चुकी थी इसलिए उस कालम में लिखा था - स्व. ए.डब्ल्यू. हीयरसे। 14वीं लाइट कैवेलरी का एक संक्षिप्त इतिहास सर्विस बुक में दर्ज था। पलटन जब से खड़ी हुई थी ज्यादातर बम्बई प्रेसीडेन्सी में तैनात रही थी। 1856-57 वाली फारस की लड़ाई में इसने भाग लिया था और 1857 के सिपाही विद्रोह के दौरान इसे वापस बुला लिया गया था। हालाँकि इसके लौटते-लौटते विद्रोह कुचल दिया गया था लेकिन तब से बार-बार इसकी तैनाती पंजाब और अफगानिस्तान सरहद पर होती रही। जब एलन पलटन में आया तो पलटन सतारा में थी। बीच में इसके अच्छे रिकार्ड के कारण लोकल प्रमोशन देकर उसे तीसरी गोरखा राइफल्स में ढाई साल के लिए सार्जेंन्ट मेजर बनाकर भेजा गया। 1905 की गर्मियों में पलटन को सरहदी सूबे की तरफ कूच करने का हुक्म मिला। वहाँ की कई लड़ाइयों का जिक्र था और सबमें एलन की बहादुरी का बयान था। साल-दर-साल कम्पनी कमाण्डरों और कमाण्डिंग अफसरों ने एलन को अच्छे रिमार्क दिये थे। कमाण्डिंग अफसरों के कई प्रशस्ति पत्र थे जो उसकी सर्विस बुक में लगे हुए थे। वहीं मार्च 1907 में एलन बुरी तरह जख्मी हुआ। कुछ दिनों तक बटालियन अस्पताल में ही उसका इलाज हुआ। बाद में उसे क्वेटा के बेस अस्पताल में भेज दिया गया। अगस्त में वह यात्रा लायक हो गया तो बेस अस्पताल से उसे लैण्डोर आराम और पूर्ण स्वास्थ्य लाभ के लिए रवाना कर दिया गया। अक्टूबर की शुरुआत में वह लैण्डोर पहुँच गया और अगर हत्या के इस दुःश्चक्र में न फँसा होता तो इस समय उसकी पलटन में वापसी की यात्रा शुरू हो गयी होती। लैण्डोर कनवालसेंस डिपो में एलन डेढ़ साल से अधिक रहा था और सर्विस बुक में दर्ज मंतव्यों के मुताबिक वह एक खुशमिजाज और मस्तमौला फौजी था। अपने सहभागियों और कमाण्डरों के बीच समान रूप से लोकप्रिय। कुछ मेडिकल रिपोर्ट सर्विस बुक में नत्थी थी। वे सभी उसके दृढ़ निश्चय और जिस्मानी सहनशीलता का प्रमाण थीं। जैसे घाव उसे लगे थे उनके बावजूद जिंदा बच निकलना किसी चमत्कार की ही तरह था।

एलन के बारे में पढ़ते समय मैं लगातार सोच रहा था कि 31 अगस्त 1909 को ऐसा क्या हुआ था कि सबकी प्रशंसा का पात्र यह प्रसन्नचित्त खिलंदड़ा इन्सान हत्यारा बन गया और इसने अपने करीबी दोस्त का जघन्यतम तरीके से खून कर दिया ।

एलन से पहली मुलाकात में ही इतनी बेचैनी क्यों महसूस हुई? उसकी कोठरी में घुसने और जेल के वार्डरों द्वारा बाहर से ताला फिर से बन्द करने के बाद जिस चीज से मैं सबसे ज्यादा चकित हुआ वह थी इस छह फुट से कुछ लम्बे नौजवान के चेहरे पर लगातार खेलने वाली मुस्कान। उभरी हड्डियों वाले गाल पर कई दिनों की बढ़ी हुई दाढ़ी के बावजूद उसकी मुस्कान अजीब सम्मोहन और इन्फेक्शन से भरी हुई थी। मौत के पन्द्रह दिन पहले कोई इस तरह मुस्करा सकता है? गौर से देखने से साफ लगता था कि पिछला एक वर्ष उसके लिए यातना और दुख से भरा रहा होगा। उसके सीने और बाजुओं की चौड़ी हड्डियों पर बहुत कम माँस चिपका था। जेल के पाजामे में छिपी टाँगें भी इतने बड़े शरीर पर अस्वाभाविक रूप से पतली लग रहीं थीं। इन सबके बीच उसकी मुस्कान बेचैन करने वाली थी।

मेरे पिछले अनुभवों के विपरीत मुझे देखकर उसने एक बार भी घबराहट या दुख के लक्षण नहीं दिखाये, मेरे सामने घुटनों पर बैठकर मेरे चोंगे में मुँह छिपाकर नहीं रोया और न ही मुझे यह समझाने की कोशिश की कि वह निर्दोष है। मेरे रस्मी सवालों का आराम से जवाब देता रहा। कमरे में मेरे लिए जेल के कर्मचारी एक कुर्सी रखकर चले गये थे। मैं उस पर बैठ कर बातें कर रहा था और वह खड़े होकर जवाब दे रहा था। मैं काफी कुछ उसके बारे में पढ़ कर आया था। सवाल तो सिर्फ उसको सहज बनाने के लिए पूछे जा रहे थे।

मैंने उसे इशारे से उसके सोने के तख्त पर बैठने के लिए कहा और उसके सामने पवित्र बाइबिल का पाठ करने लगा। खास तौर से वे अंश पढ़े जहाँ कन्फेशन का महत्व समझाया गया है। वह पूरी श्रद्धा और ध्यान से सुनता रहा। मुझे खुशी हुई कि एक सच्चे ईसाई के सामने प्रभु यीशू की महिमा बखानने का मौका मुझे मिल रहा था। गलती किससे नहीं होती? उन्तीस साल के इस नौजवान से भी हुई है और अगले कुछ दिनों में तो इसे इसका दंड भी मिल जायेगा पर एक बार प्रभु के समक्ष कन्फेस करते ही वे इसे अपनी शरण में ले लेंगे और नर्क से इसे मुक्ति मिल जाएगी।

मैंने पाठ करते-करते उसके चेहरे पर नजरें दौड़ाईं। मुझे फिर वही बेचैनी हुई जो उसके कमरे में घुसते समय हुई थी। उसके चेहरे पर जो मुस्कान थी वही मुझे बेचैन कर रही थी। जिसे सिर्फ पंद्रह दिन बाद मरना हो और जो इसे जानता भी हो कैसे ऐसे मुस्करा सकता है? क्या था इस मुस्कान में -- बचपना, खिलन्दड़ापन या चुनौती? समझना मुश्किल था।

जब मैं उठा तो यह मुस्कान मुझे चुनौती जैसी लगी। मैंने पाठ समाप्त कर शांत स्वर में उसे कन्फेस करने के लिए कहा तो उसने इसी मुस्कान के साथ, आवाज में बिना किसी उतार-चढ़ाव के कहा -

"मैंने कुछ किया ही नहीं फादर, मैं कन्फेस क्या करूँ?"

मैं अन्दर से हिल गया। मृत्यु इतनी करीब और कोई इस तरह मुस्करा सकता है! अभी दो मौके और मिलने थे। मैं आश्वस्त था कि इसे समझा सकूँगा और यह प्रभु की शरण में जाने लायक बन सकेगा।

28 अगस्त 1910

रात भर जम कर बारिश हुई थी। सुबह थोड़ी देर आसमान खुला जरूर पर जल्द ही घने बादल आकाश में छा गये। छाता लेकर चर्च तक गया। मास में उपस्थिति काफी कम थी। घर लौटा तो बारिश और तेज हो गयी थी। गेट के बाहर सड़क के किनारे इमली के छतनार दरख्त के नीचे खड़ा हुआ इक्का मुझे आते ही दिख गया। घने पेड़ की पत्तियों से छन-छन कर बूँदें नीचे खड़े घोड़े को भिगो जरूर रही थीं पर इतनी भी नहीं कि वह बहुत बेचैनी दिखाता। वह पानी से ज्यादा शरीर पर मँडराती मक्खियों से परेशान था जिन्हें वह लगातार अपनी भीगी दुम से उड़ा रहा था और सामने पड़े घास के ढेर में मुँह घुसाये हुआ था। इक्के वाला बारिश से बचने के लिए किसी आड़ में चला गया लगता था।

"हुजूर, आज जेल की विजिट रहने दें। इतनी बारिश में नाहक जी हलकान करेंगें।"

मेरा छाता पकड़ कर राम अजोर ने कहा।

मेरा फैसला भी कुछ डगमगाया। हालाँकि सुबह जब मैं उठा तब भी झड़ी लगी हुई थी लेकिन मुझे फैसला करने में एक मिनट भी नहीं लगा था। दरअसल फैसला करने के लिए कुछ था भी नहीं। पिछले शनिवार की तरह आज की रात भी मैं सो नहीं सका था। पूरी रात आधा सोने और आधा जागने में एलन का चेहरा आँखों के सामने घूमता रहा था। उसकी वह निश्छल बच्चों जैसी हँसी बार-बार हांट करती रही जिससे पहली मुलाकात में मेरे हर प्रश्न पर उसने मुझे निरुत्तर कर दिया था। प्रभु की आज्ञा मैंने कितनी बार कितनी तरह से दोहरायी पर जैसे ही उसे कन्फेस करने के लिए कहता उसके ओठों पर एक निष्पाप हँसी फैल जाती और एक ही वाक्य से वह मेरे सारे प्रयत्नों पर पानी फेर देता -

"मैंने हत्या की ही नहीं फादर, मैं कन्फेस क्या करुँ?"

राम अजोर के इसरार ने मेरा निश्चय कुछ कमजोर जरूर किया किंतु कोई दुर्निवार आकर्षण था जो मुझे एलन की तरफ खींच रहा था। कौन-सी चीज है जो एक हत्यारे में इस कदर दिलचस्पी पैदा कर रही है? क्या उसकी यह क्षमता कि पूरी तरह ह्त्यारा साबित होने के बाद भी बिना किसी पश्चात्ताप या हिचकिचाहट के वह बच्चों जैसी हँसी के साथ अपने को निर्दोष घोषित कर सकता है या फिर यह कि उसके पास समय कम है और मैं उसे एक चुनौती के रूप में पा रहा हूँ? मुझे उससे लम्बी बहसें कर उसे परास्त करना होगा और उसके इस छद्म आवरण को, जो उसने झूठे आत्मविश्वास से ओढ़ रखा है, तार-तार कर देना होगा। तभी जाकर वह कन्फेस करेगा।

मैं कह नहीं सकता कि क्या था जिसने मेरे मुँह से कहलवा लिया -

"नहीं, मैं जाऊँगा। इक्केवान से कहो तैयार रहे। बारिश रुकते ही हम चल पड़ेंगे।"

नैनी जेल जाने की उत्सुकता मुझे कितनी थी इसका अन्दाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता था कि मैं लंच लेकर बाहर बरामदे में ही बैठ गया। मेरा मन किसी चीज में नहीं लग रहा था। आरामकुर्सी पर अधलेटा पवित्र बाइबिल के पृष्ठ उलटता रहा और बारिश रुकने का इंतजार करता रहा।

बारिश पूरी तरह से रुकी तो नहीं थी पर इतनी हल्की जरूर पड़ गयी थी कि आप उसे झींसा पड़ना कह सकते हैं और मैंने राम अजोर को इक्का लगवाने का हुक्म दिया। मैं और इंतजार नहीं कर सकता था।

इक्का मेरे पोर्टिको में आकर खड़ा हुआ। भीगा घोड़ा बेचैन लग रहा था। वह लगातार अपनी दुम अपनी पीठ पर मार रहा था। दुबले मरियल इक्केवान को उसे सँभालने में अपना पूरा जोर लगाना पड़ रहा था। मुझे बाहर निकलते देखकर बाँयें हाथ से घोड़े की लगाम कसकर थामे साईस ने लगभग दोहरा होते हुए झुककर मुझे दाहिने हाथ से सलाम किया। उसके सलाम का जवाब सिर हिलाकर मैंने दिया और अपना चोंगा सँभालते हुए इक्के पर बैठ गया। इक्केवान ने इक्के के अगले हिस्से पर एक बोरी उल्टी करके रख रखी थी। इक्के पर बैठने के पहले उसने बोरी को इस तरह से सिर पर डाल लिया कि वह उसके लिए बरसाती बन गयी। बोरे की बरसाती सिर पर डाले जब वह इक्के पर बैठा और उसने घोड़ा हाँका तो स्थिति यह थी कि हल्की-हल्की बूँदों से वह काफी हद तक सुरक्षित था।

रास्ते भर बारिश रुक-थम कर होती रही। जब पानी तेज होता, हम आम, इमली या बरगद के किसी बड़े पेड़ की शरण ले लेते और जैसे ही पानी हलका होता, हमारी यात्रा शुरू हो जाती।

जेलर के बँगले के सामने इक्का रुका तो मुझे अहसास हुआ कि आज आगस्टीन ने मेरे आने की उम्मीद छोड़ रखी थी। बारिश की वजह से आम तौर से उसके बड़े बँगले के अहाते में काम करने वाले कैदियों की फौज नदारद थी। घर का मुख्य दरवाजा बन्द था और बरामदे भी सूने पड़े थे। मुझे भीगने से बचाने के लिए इक्केवान ने घोड़े की लगाम खींचते हुए और खुद पैदल चलते हुए उसे ऐसे स्थान पर लाकर खड़ा किया कि मैं कूदकर सीधे बरामदे में उतर गया।

इक्के की खटपट और मेरे कूदने की आवाज ने अन्दर कुछ हलचल पैदा की और घर का बड़ा-सा प्रवेश द्वार खोलते हुए पहले एक नौकर और उसके पीछे आगस्टीन बाहर निकल आया।

"फादर, आप!" आवाज से स्पष्ट था कि आगस्टीन मेरी इस विजिट के लिए तैयार नहीं था।

"इलाहाबाद में बारिश रुक गयी थी। यमुना के इस तरफ ज्यादा है।" मैंने अपनी झेंप मिटाते हुए कहा। मैं एलन में अपनी उत्सुकता का जिक्र नहीं करना चाहता था।

"कोई बात नहीं। अच्छा हुआ आप आ गये, फादर। आपके साथ खूब गप्प लड़ेगी। बारिश ने तो घर में कैद कर रखा है।"

वह मुझे साथ लेकर अन्दर बैठक में चला गया। मेरा गाउन भीग गया था। उसे एक नौकर भीतर बरामदे में सुखाने के लिए ले गया। दूसरा नौकर तौलिया ले आया जिससे रगड़-रगड़ कर मैंने अपना सर और चेहरा सुखा डाला। हम एक गोल मेज के इर्द-गिर्द बैठ गये। नौकर चाय बनाकर ले आया था और आगस्टीन ने एक प्याले में ढाल कर चाय मेरे आगे बढ़ायी।

"क्या हाल है तुम्हारे उस कैदी का?"

"किसका फादर, आप किस कैदी की बारे में पूछ रहे हैं?"

"उसी अँग्रेज का... जिसे फाँसी की सजा हुई है।"

"अच्छा, आप एलन की बात कर रहे हैं। माफ कीजिएगा, फादर, मैं आपके जाने के बाद उसके पास जा नहीं पाया। फाँसी की बैरक की तरफ गया तो, पर एलन की कोठरी तक नहीं गया। फाँसी के दो और कैदी दाखिल हैं, उनकी कोठरियाँ तो चेक कीं मैंने, एलन की कोई शिकायत नहीं थी इसलिए वहाँ नहीं गया।"

आगस्टीन की आवाज में कुछ झिझक थी जैसे वह मुझे सफाई दे रहा हो।

"नहीं, नहीं, मैं तो ऐसे ही पूछ रहा हूँ। इतने कैदियों का भार है तुम पर... सबसे कैसे मिल सकते हो हर हफ्ते। मैं तो उसी के लिए आया था।" मैंने उसे आश्वस्त किया।

मुझे जल्दी-जल्दी चाय खत्म करते देख आगस्टीन ने टोका -

"जल्दी क्या है, फादर। आराम से जेल हो आइएगा। तब तक मेरे खानसामे की बनाई पकौड़ियाँ खाइए। बरसात में अच्छी लगेंगी।"

मैं एलन से मिलने के लिए इतना उत्सुक था कि सामान्य शिष्टाचार और औपचारिकताओं की उपेक्षा करता हुआ उठ खड़ा हुआ।

"जेल से लौट कर आराम से बैठेंगे। आज तो बारिश जल्द जाने नहीं देगी, तुम्हारे साथ ही गप्प लड़ेगी।"

जेल का एक सिपाही मुझे जेलर के घर से जेल के फाटक तक ले गया। वहाँ तैनात संतरी मुझे पहचानते ही थे, इसलिए जरूरी औपचारिकताएँ पूरी करता हुआ मैं चन्द मिनटों में ही तनहाई बैरक के सामने था।

तनहाई बैरक में तीन फाँसी के कैदी थे। दाहिने ओर सबसे कोने वाली कोठरी में कैद था एलन। हेड वार्डर और एक सिपाही मुझे वहाँ लेकर गये। हमारे कदमों की आहट से ही एलन जान गया कि मैं आया हूँ। जब तक हम उसकी कोठरी के सीखचों वाले दरवाजे के सामने पहुँचते वह खुद ही सामने आ गया। वार्डर ने अपनी पेटी से बँधी चाभियों के गुच्छे की एक चाभी से ताला खोला और मैं धीरे से अन्दर चला गया। उसने दरवाजा फिर से बन्द कर दिया और सामने से हट गया।

"फादर, शुक्र है आप आ गये। कोठरी के अन्दर रात से ही बरसात की आवाज आ रही है। मैं तो निराश हो गया था कि आप आज नहीं आयेंगे।"

मेरे अन्दर घंटियाँ बजीं। मेरी प्रतीक्षा कर रहा था एलन ! पाप एक सच्चे इसाई को अन्दर से झकझोरता जरूर है ! लेकिन जल्दी ही मुझे निराश होना पड़ा। मैंने पवित्र बाइबिल का अपना सबसे प्रिय अंश डूब कर पढ़ना शुरू किया...

धन्य है वह मनुष्य , जिसका अपराध क्षमा किया गया , और जिसका पाप ढाँपा गया।

धन्य है वह मनुष्य जिस पर प्रभु अधर्म का अभियोग नहीं लगाता , और जिसके मन में कोई कपट नहीं है। जब तक मैंने अपना पाप प्रकट नहीं किया , मेरी देह दिन भर की कराह से कमजोर हो गई।

मैंने तेरे सम्मुख अपना पाप स्वीकार किया , और अपने अधर्म को छिपाया नहीं ;

मैंने कहा , " मैं प्रभु के समक्ष अपने अपराध स्वीकार करूँगा। "

और तूने मेरे पाप और अधर्म को क्षमा कर दिया ...

पढ़ते-पढ़ते मैंने एलन की तरफ देखा। उसके चेहरे की मुस्कान ने मुझे भ्रमित कर दिया। शुरू में तो पिछली मुलाकात की तरह यह किसी बच्चे-सी निश्छल हँसी लगी लेकिन आज न जाने क्यों इसमें उपहास और चुनौती जैसी छवियाँ ज्यादा दिखीं। क्या प्रभु यीशू मेरा इम्तहान ले रहे हैं ? हे भगवान, कितना सधा हुआ कठोर अपराधी है यह? मैं जब भी उसे कन्फेस करने के लिए कहता हूँ तब उसका एक ही जवाब मिलता है -

"मैंने हत्या की ही नहीं है तो मैं कन्फेस क्या करूँ?"

मैंने अपने पूरे जीवन में अपने को इतना असहाय कभी महसूस नहीं किया था।

ऐसा क्या है जो मुझे उसकी आँखों में आँखें डालकर सीधे देखने से रोकता है ? क्यों हर बार मैं ही अपनी निगाहें झुका लेता हूँ जैसे कि अपराधी मैं ही हूँ? क्या है उसकी नजरों में कि हर बार मैं कमजोर पड़ जाता हूँ? उसे अपराधी मानते-मानते खुद को लगने लगता है कहीं कुछ छूट रहा है।

झुँझलाकर मैं पादरी से कोतवाल बन जाता हूँ। पूरी तफ्तीश पर उतारू हो जाता हूँ। हालाँकि इसका कोई मतलब नहीं है। एक अँग्रेज सिपाही के खिलाफ झूठा मुकदमा चले और कोई अँग्रेज जज उसे फाँसी की सजा दे दे, इसकी तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकता। पर उसके आत्मविश्वास को देखते हुए मैं इस तफ्तीश में उलझता हूँ, पर किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाता। पिछली मुलाकात में उसने पूरा वाकया सुनाया था। मैंने जेल में अदालत से आयी उसकी फाइल पढ़ी थी, दोनों विवरण पूरी तरह मिलते थे। ऐसा कैसे था कि एक ही जैसे विवरण के आधार पर अदालत ने उसे दोषी करार दिया और वह स्वयं को निर्दोष मान रहा है। पिछली मुलाकात में एक पेच रह गया था। मैं आज उसे पूरी तरह सुलझा लेना चाहता हूँ। एलन पुलिस और अदालत के सामने बयान में 31 अगस्त 1909 को अपने एक-एक पल की गतिविधियों की जानकारी देता है। सिर्फ रात साढ़े सात बजे से लेकर आधी रात तक का विवरण नहीं देता। पुलिस के सामने तो एक बार उसके मुँह से निकल भी गया कि वह इस बीच किसी लड़की के साथ था पर अदालत में तो उसने इस बारे में पूरी चुप्पी साधे रखी। पुलिस को भी उसने लड़की का नाम नहीं बताया था।

मैंने भी एलन से 31 अगस्त 1909 के बारे में पूछना आरम्भ किया।

पहले तो एलन ने सहयोग करने से ही इनकार कर दिया पर शायद मेरे चेहरे पर उभर आये खिसियाहट और खीझ के भाव ने उसे पिघला दिया। तरस खाने वाले अन्दाज में मुस्कराते हुए उसने जवाब देना शुरू किया। पर बात वहीं आकर अटक गयी। 31 अगस्त को अँधेरा होने से थोड़ा पहले वह जेम्स की दुकान पर पहुँचा। जेम्स को पता था कि वह छुट्टी जा रहा है। वह बेसब्री से उसका इंतजार कर रहा था। दोनों के स्वभाव में कुछ ऐसी समानताएँ थीं कि पूरे कैन्टोनमेंट में उन्हें अच्छा दोस्त माना जाता था। जेम्स ने उसके आते ही दुकान बढ़ायी और उसे लेकर अन्दर के कमरे में चला गया। शाम को ही मिसेज सैमुअल ने जेम्स को वेतन दिया था जो सावरेन की शक्ल में उसके बिस्तर पर पड़ा था। उन्हें एक तरफ करके जेम्स बिस्तर पर बैठ गया और सामने पड़ी आरामकुर्सी पर एलन बैठा था। कमरा छोटा ही था और जेम्स की रिहायश के काम आता था। थोड़ी दूर पर एक छोटी-सी सराय थी जहाँ से जेम्स के लिए खाना आता था। खाना आ चुका था और बिस्तर तथा आरामकुर्सी के बीच पड़ी मेज पर रखा था। वे दोनों देर तक दुनिया-जहान की बातें करते रहे। एलन घर जाने की कल्पना से रोमांचित था। दोनों के घर दूरी पर थे पर जेम्स ने एलन से अनुरोध किया कि यदि समय मिले तो वह उसकी माँ से जरूर मिलता आये। एलन ने वादा भी किया। जेम्स ने शाम को ही एक पहाड़ी से छाँग मँगा कर रखी थी। इरादा था कि एलन के साथ छक कर पियेगा। लेकिन एलन ने मना कर दिया। उसने साथ देने के लिए एक छोटा पेग पिया। जेम्स को आश्चर्य भी हुआ पर एलन की यह बात कि उसे अभी छावनी वापस जाना है और फिर वहाँ से सामान लेकर रात में ही पहाड़ी रास्तों से उतरकर राजपुर पहुँचना है उसकी समझ में आ गयी।

लगभग घंटे भर का समय बिताकर एलन जेम्स की दुकान से निकल गया। बाहर सन्नाटा था और सर्द हवाओं के बीच एकांत गलियों से निकलते समय एलन ने पाया कि आस-पास कोई नहीं था।

पर इसके बाद एलन कहाँ गया? अगर सचमुच वह किसी लड़की के पास गया तो कौन-थी वह?

मेरे लाख पूछने पर एलन ने कुछ नहीं बताया। मेरे सवालों के उत्तर में कभी वह शून्य में ताकने लगता, कभी शर्मीली-सी मुस्कान उसके चेहरे पर तैरती और कभी ऐसा गुमसुम बैठ जाता कि जैसे मेरी बात उसने सुनी ही न हो। सिर्फ एक बार जब मैंने बड़ी सख्ती से अपनी आवाज से उसे लगभग झकझोरते हुए पूछा तो वह हौले से बुदबुदाया--

"आप जिसे प्यार करते हैं उसे रुसवा कर सकते हैं क्या?"

मुझे पूरा यकीन हो गया था कि एलन एक नम्बर का मक्कार है। सिर्फ अपने को निर्दोष साबित करने के लिए उसने यह कहानी गढ़ी है। वह किसी लड़की के पास नहीं गया। कोई लड़की थी भी नहीं उसकी जिन्दगी में। वह एक खिलन्दड़ा और दोस्तबाज आदमी था। अगर सचमुच की कोई प्रेमिका होती तो उसके दोस्तों को पता न हो - ऐसा हो नहीं सकता। इस लड़की का जिक्र उसने सिर्फ खुद को फाँसी के फन्दे से बचाने के लिए किया था पर उसके दुर्भाग्य से उसकी यह तिकड़म उसके काम नहीं आयी।

4 सितम्बर 1910

एक साल पहले मसूरी में जो नाटक शुरू हुआ था कल सुबह चार बजे उसका पटाक्षेप हो जाएगा। अब हत्यारे से मेरी मुलाकात नहीं हो सकेगी। पता नहीं उसे हत्यारा कहना उचित भी है या नहीं ? अदालत ने फाँसी की सजा दी है तो उसे हत्यारा मानने में मुझे दिक्कत क्यों होनी चाहिए? अगर पिछले दो रविवार मैंने एलन के साथ नहीं बिताये होते तो मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता था कि वह हत्यारा है। जितनी बार मैं उससे मिला हूँ उतनी ही बार मेरा विश्वास डगमगाया है। क्या मैं कह सकता हूँ, वह हत्यारा नहीं है या मैं पूरे यकीन से कह सकता हूँ कि वह हत्यारा है? प्रभु यीशू मेरी मदद करें।

फाँसी चढ़ने वाले कैदियों की दोष-मुक्ति से मुझे हमेशा आंतरिक शान्ति मिलती है। प्रभु बहुत दयावान है। कन्फेशन करने वाले सारे पापियों को क्षमा कर देता है। मैं भाग्यशाली हूँ कि उसने मुझे निमित्त बनाया है। इसे भी क्षमा कर देगा। मेरा अनुभव है कि फाँसी पाये कैदी पहली मुलाकात में ही कन्फेशन के लिए आतुर रहते हैं। वे मिलते ही फूट-फूट कर रोने लगते हैं और अपना पाप कबूल करने के लिए तैयार दिखते हैं। उनके और प्रभु के बीच में मेरे सिवाय कोई नहीं होता, इसलिए मेरे सामने वो सब बता डालते हैं जो उन्होंने अदालत के सामने भी नहीं बताया होता है। सिर्फ एक बार ऐसा भी हुआ था कि फाँसी की बैरक से निराश मैं सिर झुकाये लौट रहा था कि कैदी ने दौड़कर मुझे रोकने का प्रयास किया। मैं उसकी कोठरी से बाहर निकल आया था और संतरी उसकी कोठरी में ताला लगा रहा था। यह मृत्युदण्ड की सजा पायी हुई एक औरत थी और पिछले कई हफ्तों से मेरे सामने गुमसुम बैठी रहती थी। मैं उसकी अंतरात्मा को झकझोरने की कोशिश करता और वह सर्द निगाहों से सिर्फ मुझे घूरती रहती। कई बार झुँझलाकर मैंने तय किया कि अब उसके पास नहीं आऊँगा लेकिन हर रविवार चर्च से अनायास मेरे कदम जेल की तरफ उठ जाते। जब कभी जेल में कोई ऐसा कैदी होता जिसे प्रभु यीशू की शरण में शांति मिल सकती हो तो रविवार को मेरा कार्यक्रम काफी हद तक तयशुदा रहता है। चर्च से मैं आगस्टीन के साथ सीधे जेल आ जाता हूँ। पहले वह मुझे जेलर की बड़ी सरकारी कोठी में ले जाता है। सर्दियाँ होतीं तो हम बाहर उसकी खूबसूरत लान में बैठकर चाय पीते हैं। कैदियों की मशक्कत से चहकते हुए अपने एक-एक पौधे के बारे में वह विस्तार से बताता है। गर्व से अपने गुलाबों की किस्में गिनाता। गुलदाउदी और डहेलिया के पौधों के साथ अपने प्रयोगों की जानकारी देता है। मैं पिटूनिया, नैस्टर्शियम, डाग फ्लावर, स्वीट पी, गेदों और इनकी तरह के तमाम खिले हुए फूलों की क्यारियों के बीच बैठकर आगस्टीन से गप्पें लड़ाता हूँ। अगर गर्मियों का मौसम होता है तो हम उसके बीस फुट से भी ऊँची दीवारों वाले ड्राइंग रूम में बैठते हैं जहाँ बाहर बरामदे में बैठकर दो कैदी मोटे कपड़ों वाले छत से लटके दो पंखों को रस्सी के सहारे डुलाते रहते हैं। अगस्टीन से चाय के प्याले पर गप्पे लड़ाकर मैं जेल की तरफ बढ़ता हूँ। आगस्टीन मुझे जेल के फाटक तक छोड़कर वापस लौट आता है। जेल का संतरी सलाम करके मेरे लिए जेल के विशाल लौह कपाट का छोटा विकेड गेट खोल देता है और मैं अभिशप्त प्राणियों की उस अँधेरी दुनिया में प्रवेश कर जाता हूँ जहाँ आकर हमेशा मुझे लगा है कि वहाँ के निवासियों को प्रभु की कृपा की सबसे ज्यादा जरूरत है। इसलिए वहाँ बपतिस्मा-प्राप्त किसी प्राणी को धार्मिक उपदेश देने जाने का मौका मिलने पर मुझे आंतरिक खुशी मिलती है।

उस दिन भी सभी कुछ ऐसा ही था। थोड़ा-सा फर्क यह आया था कि जेल के अंदर घुसते समय मुझे खुशी से अधिक अवसाद की अनुभूति हो रही थी। मैं अंदर एक ऐसी महिला कैदी से मिलने जा रहा था जिसे दूसरे दिन फाँसी लगने वाली थी। पिछले कई हफ्तों से मैं उसे नियमित रूप से पवित्र बाइबिल सुना रहा था। मैंने विस्तार से उसे कन्फेशन के बारे में बताया था। वह एक श्रद्धालु इसाई लगती थी और हर बार पूरी तन्मयता से मेरे प्रवचन सुनती थी। पहली बार जब मुझे लगा कि वह पूरी तरह से प्रभु चरणों में लीन हो गयी है तब मैंने उसे कन्फेशन के लिए कहा तो एकदम से उसका चेहरा विकृत हो गया। उसके होंठ फड़फड़ाने लगे और आँखें शून्य में टिक गयीं। मेरी लाख कोशिशों के बावजूद उसने मुझसे आँखें नहीं मिलायीं। थक-हार कर मैं लौट आया। उसके बाद कई हफ्तों तक मैं कोशिश करता रहा पर हर बार कन्फेशन के दरवाजे पर पहुँचकर मैं लौट आता।

फाँसी के एक दिन पहले सब कुछ पहले जैसा ही हुआ। मैंने विस्तार से उसके सामने कन्फेशन के महत्व पर प्रकाश डाला। मैंने देखा कि हर बार की तरह वह बेचैन हो उठी, हर बार की तरह उसके होंठ फड़फड़ाये और हर बार की तरह उसकी आँखें शून्य पर अटक गयीं। मुझे पता था कि आज आखिरी मौका है, अगर आज उसने कन्फेशन नहीं किया तो उसके पाप कभी माफ नहीं किये जायेंगे। प्रभु यीशू की शरण में जाने का आज अंतिम मौका है। मैं लगा रहा - उसकी आँखों में भरी घोर अवज्ञा के बावजूद। लेकिन कब तक मैं चट्टान से सिर टकराता? निराश होकर उठा और थके कदमों से उसके सेल से बाहर निकल आया। तभी वह कुछ घटा जिसकी मैंने उम्मीद नहीं की थी।

मैं मुश्किल से दस कदम चला होऊँगा कि मुझे सलाखों के पीटने की आवाज सुनाई दी। पीछे मुड़कर मैंने देखा कि वह सेल के सलाखों वाले दरवाजे पर अपना सर पटक रही थी और दरवाजे पर ताला लगा चुका संतरी फटी आँखों से उसे देख रहा था। मैं वापस झपटा।

"मुझे कन्फेशन करना है, फादर।" सलाखों पर सर पटकते हुए उसने सिर्फ इतना कहा।

"दरवाजा खोलो।"

मेरे मुँह से निकला। संतरी ने हिचकिचाहट से मेरी तरफ देखा। शायद नियम उसे इस बात की इजाजत नहीं दे रहे थे कि मृत्युदण्ड के कैदी का कक्ष एक बार बंद कर देने के बाद बिना बड़े अफसर के हुक्म के दुबारा खोला जाये।

"दरवाजा खोलो।"

मैंने सख्ती से फिर कहा। शायद यह मेरे और उस जेल के जेलर आगस्टीन के बीच मित्रता थी जिसे जेल के मुलाजिम जानते थे और शायद इसी की वजह से संतरी ने कुछ क्षण की हिचकिचाहट के बाद सेल का दरवाजा खोल दिया।

उसके बाद उस पतिहंता औरत ने जो कुछ मेरे सामने कन्फेस किया वह इतना यातनाजनक था कि मैं काफी देर तक स्तब्ध बैठा सुनता रहा। उसने कब बोलना बन्द किया और कब जमीन पर लुढ़क गयी, मुझे पता ही नहीं चला। उसका मुँह नीचे जमीन की तरफ था और वह एक मध्यम लय में हौले-हौले सुबक रही थी। मैंने घुटने के बल बैठकर अपनी सलीब चूमी और ह्ल्के हाथों से उसका सर सहलाया और तेज कदमों से बाहर निकल आया। वहाँ एक क्षण भी रुकना संभव नहीं था। प्रभु यीशू तुम्हें क्षमा करेंगे, यह भी मैं बाहर निकल कर ही कह सका।

क्या सचमुच उसे क्षमा की जरूरत थी? उसका कन्फेशन सिर्फ मेरे और प्रभु के लिए है इसलिए मैं उसे लिख नहीं सकता, लेकिन अगर मैं उसकी जगह होता तो क्या मैं उस राक्षस पति को नहीं मारता? कन्फेशन करने की जरूरत किसे थी - मारे गये पति को या हत्या के अभियुक्त पत्नी को - तय करना मुश्किल था। पता नहीं कई बार पाप और पुण्य की विभाजक रेखा इतनी क्षीण क्यों हो जाती है?

आज जिसके सेल से मैं थका-हारा लौटा हूँ वह मेरे जीवन का पहला कैदी है जिसने मृत्युदण्ड की पूर्व संध्या पर भी कन्फेशन नहीं किया। मेरी हर कोशिश के बाद वह सिर्फ हल्के से मुस्कुराता और बस इतना कहता -

"मैंने कोई पाप नहीं किया फादर, किस बात को कन्फेस करूँ?"

ऐसा क्यों हुआ कि हर बार मैंने अपने को और अधिक कमजोर पाया। पहली बार जब उसने कहा तो अपनी सारी कोशिशों के बावजूद मैं झुँझला उठा। मैंने कठोर निगाहों से उसे देखा। वह हत्या के कुछ ही घंटों बाद पकड़ा गया था और सारे साक्ष्य उसके खिलाफ थे। अदालत में उसे सफाई देने का मौका मिला था और सब कुछ सुनने के बाद ही जज ने उसे मृत्युदण्ड दिया होगा। इसके बावजूद भी अगर वह कन्फेस करने के लिए तैयार नहीं था तो ऐसे ढीठ आदमी के साथ आप कैसे सहानुभूति रख सकते हैं? पर प्रभु यीशू ने एक पादरी की हैसियत से मुझे जो दायित्व सौंपा है उसे तो निभाना ही था। संत पीटर से चली आ रही परम्परा को मैं कैसे छोड़ सकता था?

एलन के साथ जो कागजात देहरादून की सेशन अदालत से जेल में आये थे उन्हें सुपरिटेंडेंट आगस्टीन के दफ्तर में बैठकर मैंने पढ़ा था। मामला बहुत सीधा-सादा था। काफी कुछ तो 14 अगस्त को मेरे घर पर लंच लेते समय लैण्डोर के कमाण्डिंग अफसर मेजर अलबर्टो ने हमारे सामने बयान किया ही था। अदालत के कागजात पढ़कर चीजें और साफ हो गयीं।

31 अगस्त 1909 को मसूरी के माल रोड पर एक केमिस्ट की दुकान में काम करने वाले मि. जेम्स रेगिलैण्ड क्लैप की दुकान के अन्दर किसी ने हत्या कर दी। हत्या बड़े जघन्य तरीके से की गयी थी। किसी ने पहले सोडा वाटर की बोतल से मृतक के सर पर वार किया था। सर पर गहरी चोट के कारण मृतक अचेत होकर अपनी कुर्सी से नीचे लुढ़का होगा और उसके बाद तेज टिन जैसी चीज से उसकी गर्दन पर एक कान से दूसरे कान तक चीरा लगा दिया गया था। इसी टिन से उसकी गर्दन में एक सुराख किया गया था। शायद हत्यारे को टिन के अलावा कोई हथियार नहीं मिला होगा। इससे यह भी साबित हो गया कि हत्यारा मृतक का परिचित था और बिना किसी हथियार के उसके पास गया था। हत्या का इरादा करते ही उसने वहीं जेम्स के कमरे में उपलब्ध सोडावाटर बोतल और टिन से काम चलाया था ।

हत्या का पता दूसरे दिन सुबह तब चला जब दुकान की सफाई करने वाला लड़का वहाँ आया और बहुत आवाज लगाने और दरवाजा पीटने के बाद भी जेम्स ने दरवाजा नहीं खोला। आस- पड़ोस के काफी लोग वहाँ इकट्ठे हो गये और दुकान की मालकिन मिसेज सैमुअल को भी खबर भेजी गयी। उनके आने के बाद ही यह फैसला लिया गया कि दुकान का दरवाजा तोड़ दिया जाये। दुकान का दरवाजा तोड़ने के बाद मिसेज सैमुअल और उनके साथ कुछ लोग अंदर घुसे तो उन्हें दुकान के अंदर सब कुछ सामान्य-सा लगा। एक ही चीज असामान्य थी कि दुकान से सटे कमरे का दरवाजा अंदर से बंद नहीं था। मिसेज सैमुअल को पता था कि जेम्स रात में सोने से पहले दुकान और अपने रहने के कमरे के बीच का दरवाजा बंद कर देता था। दरवाजा खुला देख किसी अनिष्ट की आशंका से वे उधर झपटीं।

अंदर कमरे की दशा देखते ही एक लम्बी चीख के साथ मिसेज सैमुअल बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ीं ।

मिसेज सैमुअल के साथ अंदर आये दूसरे लोग भी सकते में आ गये। अन्दर का दृश्य था ही ऐसा। अन्दर फर्श पर खून के थक्कों के बीच जेम्स मृत पड़ा था। पास ही एक कुर्सी उलटी हुई थी। उसके पास एक सोडे की आधी टूटी बोतल पड़ी हुई थी। शव के पास ही टूटी बोतल के टुकड़े बिखरे हुए थे। शव औंधा पड़ा था। सर पर गहरे जख्म के इर्द-गिर्द खून जम गया था। बाद में पुलिस ने आकर जब शव को सीधा किया तब यह स्पष्ट हुआ कि उसके चेहरे पर एक कान से दूसरे कान तक एक लम्बा चीरा लगा हुआ था।

यद्यपि, एलन के खिलाफ कोई प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य नहीं था पर सारी परिस्थितियाँ उसके खिलाफ थीं। वह जेम्स के साथ देखा जाने वाला अंतिम व्यक्ति था। जेम्स को उसी दिन अपनी मालकिन से वेतन मिला था, मृतक के पास उसका वेतन नहीं था। वेतन में कुछ मलका विक्टोरिया की तस्वीर वाले सोने के सिक्के या सावरेन भी थे और एलन ने राजपुर के होटल में सावरेन से भुगतान किया था। एलन के पास एक टिन का डिब्बा मिला जिसमें वह कुछ सैण्डविचेस लेकर मसूरी से चला था। जेम्स की हत्या भी टिन से गर्दन काटकर की गयी थी। अदालत ने पूरी सुनवाई के बाद उसे दोषी करार दिया था, अतः मेरे पास भी शुरू में उसे हत्यारा मानने के सिवाय कोई विकल्प नहीं था। यह तो बाद में जैसे-जैसे मैं उससे मिलता गया मेरे मन का संशय बढ़ता गया।

आज जब मैं उसके सेल से बाहर निकल रहा था, मैं पूरी तरह से भ्रमित था। शायद भ्रमित कहना उचित नहीं होगा। ऐसा तो नहीं कि जब सेल से सर झुकाये, थके कदमों से मैं बाहर निकला तो कहीं न कहीं मुझे भी लग रहा था कि एलन अपराधी नहीं था? फिर वह कन्फेशन किस बात का करता?

वापस लौटते समय मेरे मन में कई बार आया कि मैं जेल के उस एकांत भरे कारीडोर में, जिसका सन्नाटा सिर्फ मेरे कदमों की चाप से टूट रहा था, रुकूँ और पीछे मुड़कर काल कोठरी की सलाखों को दोनों हाथों से पकड़े और मेरी पीठ पर एकटक निगाहें गड़ाये एलन को अंतिम बार देख लूँ, पर सिर्फ इस झिझक से मैं सीधे चलता चला गया कि उसके चेहरे पर नजरें डालते ही मेरी निगाह उस मुस्कान पर पड़ेगी जिसके बारे में मैं अब तक फैसला नहीं कर पाया था कि उसमें सिर्फ खिलन्दड़ा भोलापन है या कोई चुनौती छिपी है।


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